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रविवार, 31 मई 2009

शत्रुओं में फूट से अपना लाभ



किसी नगर में द्रोण नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहा करता था। उसका जीवन भिक्षा पर ही आधारित था। अतः उसने अपने जीवन में न कभी उत्तम वस्त्र धारण किए थे और न ही अत्यंत स्वादिष्ट भोजन किया था। पान-सुपारी आदि की तो बात ही दूर है। इस प्रकार निरंतर दुःख सहने के कारण उसका शरीर बड़ा दुबला-पतला हो गया था।

ब्राह्मण की दीनता को देखकर किसी यजमान ने उसको दो बछड़े दे दिए। किसी प्रकार मांग-मांगकर उसने दोनों बछड़ों को पाला-पोसा और इस प्रकार वे जल्दी ही बड़े और हृष्ट-पुष्ट हो गए। ब्राह्मण उनको बेचने की सोच रहा था तभी उन दोनों बछड़ों को देखकर एक दिन किसी चोर ने चुरा लेने की योजना बनाई।

वह चोरी करने जा ही रहा था कि आधे मार्ग में उसको एक भयंकर व्यक्ति दिखाई दिया। उस व्यक्ति के प्रत्येक अंग से भयंकरता का आभास हो रहा था।

उसे देखकर चोर घबराकर एक बार तो वापस जाने का विचार कर बैठा, किन्तु फिर भी उसने साहस करके उससे पूछ ही लिया, “आप कौन हैं?” “मैं तो सत्यवचन नामक ब्रह्मराक्षस हूं, किन्तु तुम कौन हो?”

“मैं क्रूरकर्मा नामक चोर हूं। मैं उस दरिद्र ब्राह्मण के दोनों बछड़ों को चुराने के उद्देश्य से घर से चला हूं।” राक्षस बोला-“मित्र! मैं छः दिनों से भूखा हूं। इसलिए चलो आज उसी ब्राह्मण को खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊंगा। अच्छा ही हुआ कि हम दोनों के कार्य एक-से ही हैं, दोनों को जाना भी एक ही स्थान पर हैं।”

इस प्रकार वे दोनों ही उस ब्राह्मण के घर जाकर एकान्त स्थान पर छिप गए। और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। जब ब्राह्मण सो गया तो उसको खाने के लिए उतावले राक्षस से चोर ने कहा, “आपका यह उतावलापन अच्छा नहीं है। मैं जब बछड़ों को चुराकर यहां से चला जाऊँ तब आप उस ब्राह्मण को खा लेना।”

राक्षस बोला, “बछड़ों के रम्भाने से यदि ब्राह्मण की नींद खुल गई तो मेरा यहां आना ही व्यर्थ हो जाएगा।” “और ब्राह्मण को खाते समय कोई विघ्न पड़ गया तो मैं बछड़ों को फिर किस प्रकार चुरा पाऊंगा। इसलिए पहले मेरा काम होने दीजिए।” इस प्रकार उन दोनों का विवाद बढ़ता ही गया था।

कुछ समय बाद दोनों जोर-जोर से चिल्लाने लगे। आवाज सुनकर ब्राह्मण की नींद खुल गई। उसे जगा हुआ देखकर चोर उसके पास गया और उसने कहा, “ब्राह्मण! यह राक्षस तुम्हें खाना चाहता है।” यह सुनकर राक्षस उसके पास जाकर कहने लगा, “ब्राह्मण! यह चोर तुम्हारे बछड़ों को चुराकर ले जाना चाहता है।”

एक क्षण तक तो ब्राह्मण विचार करता रहा, फिर उठा और चारपाई से उतरकर उसने इष्ट देवता का स्मरण किया। उसने मंत्र-जप किया और उसके प्रभाव से उसने राक्षस को निष्क्रिय कर दिया। फिर उसने लाठी उठाई और उससे चोर को मारने के लिए दौड़ा। चोर वहां से भाग खड़ा हुआ। इस प्रकार उसने अपने बछड़े भी बचा लिए।

साभारः पंचतंत्र की कहानियां

भली सीख न मानने का बुरा फल



किसी स्थान पर उद्धत नाम का एक गधा रहता था। दिनभर वह धोबी के साथ रहकर उसके कपड़े ढोता था। रात को धोबी उसको छोड़ देता था और वह मनमाना इधर-उधर घूमा करता था। प्रातःकाल होते ही वह स्वयं ही धोबी के घर पर आ उपस्थित होता जिससे कि धोबी उस पर विश्वास करके उसको कभी बांधता नहीं था।

इस प्रकार किसी दिन रात को खेत में चलते हुए उसकी मित्रता एक श्रृंगाल (सियार) से हो गई। गधा खेत की बाड़ तोड़ने में निपुण था। इस प्रकार बाड़ तोड़कर वह खेत में घुसकर श्रृंगाल के साथ ककड़ियां खाया करता था। प्रातःकाल दोनों अपने-अपने स्थान पर चले जाया करते थे।

एक दिन उस गधे ने श्रृंगाल ने कहा, “भानजे! देखो, आज की रात कितनी सुहानी है। चन्द्रमा चमक रहा है, बयार बह रही है, भीनी-भीनी सुगन्ध आ रही है। ऐसे में मेरा मन गाना गाने को कर रहा है। बताओ कौन से राग का गाना गाऊं?”

श्रृंगाल बोला, “मामा! क्यों व्यर्थ में आपत्ति को निमंत्रण दे रहे हो? हम लोग यहां चोरी करने आए हैं। चोरों और व्यभिचारियों को चाहिए कि वे स्वयं को छिपाकर रखें। कहते हैं कि जिस व्यक्ति को खांसी आती हो उसको दूसरी स्त्री के पास नहीं जाना चाहिए और जो व्यक्ति रोगी हो उसको अपनी जीभ पर नियंत्रण रखना चाहिए।”

“और मामा! आपका स्वर भी तो मधुर नहीं है। उसे सुनकर खेत के रखवाले जाग जाएंगे। तब फिर वे या तो आपको मार डालेंगे या फिर बांध देंगे। इसलिए चुपचाप अमृत के समान इन ककड़ियों को खाओ, गाने-वाने के फेर में मत पड़ो।”

गधा कहने लगा, “तुम जंगली हो न इसलिए संगीत के विषय में तुम्हें न कोई ज्ञान है और न ही तुमको उसमें मजा आता है।” “मामा! शायद तुम ठीक कहते हो। किन्तु तुम्हें ही गाना कहां आता है, तुम तो रेंकते हो।”

“क्या मूर्खता की बातें करता है! तू कहता है मुझे गाना नहीं आता और मैं कहता हूं कि मुझे सारा संगीत-शास्त्र कंठस्थ है। स्वर क्या होते हैं, उनके कितने भेद होते हैं, उन भेदों को क्या कहते हैं आदि-आदि। फिर भी तुम कहते हो कि मुझे गाना नहीं आता?” श्रृंगाल समझ गया कि गधे को गाने की सूझी है।

अतः उसने कहा, “मामा! यदि यही बात है तो मैं इस बाड़े के बाहर बैठकर खेत की रखवाली करता हूं, तुम निश्चिंत होकर अपना गाना गाओ।” श्रृंगाल खेत के बाहर होकर सुरक्षित स्थान पर बैठ गया। उसके जाते ही गर्दभ ने रेंकना आरम्भ किया। जल्द ही उसकी आवाज को सुनकर खेत का रखवाला क्रोध से पागल होकर दौड़ा हुआ आया। खेत में जब उसने गधे को देखा तो उसको इतना मारा, इतना मारा कि वह वहीं पर चित हो गया।

रखवाले को इतने ही में सन्तोष नहीं हुआ। उसने उस गधे के गले में एक भारी ऊखल बांध दी और स्वयं निश्चंत होकर सो गया। रखवाले के जाते ही गधा उठ गया। कहते हैं कि कुत्ते, घोड़े और खासकर गधे को मार की पीड़ा कुछ ही क्षणों तक रहती है। गधा उस ऊखल के साथ खेत के बाहर जाने लगा।

उस समय श्रृगाल बोला, “मामा! मैंने कितना मना किया था किन्तु तुम माने नहीं। अब देखो कितना सुन्दर मणि उपहार रूप में तुम्हारे गले में लटका हुआ मिल गया है।”

किसी ने ठीक ही कहा है जो स्वयं बुद्धिहीन हो और मित्र का कहना भी न माने वह व्यक्ति मुसीबत में पड़ जाता है।”

(साभारः पंचतंत्र की कहानियां
किसी स्थान पर उद्धत नाम का एक गधा रहता था। दिनभर वह धोबी के साथ रहकर उसके कपड़े ढोता था। रात को धोबी उसको छोड़ देता था और वह मनमाना इधर-उधर घूमा करता था। प्रातःकाल होते ही वह स्वयं ही धोबी के घर पर आ उपस्थित होता जिससे कि धोबी उस पर विश्वास करके उसको कभी बांधता नहीं था।

इस प्रकार किसी दिन रात को खेत में चलते हुए उसकी मित्रता एक श्रृंगाल (सियार) से हो गई। गधा खेत की बाड़ तोड़ने में निपुण था। इस प्रकार बाड़ तोड़कर वह खेत में घुसकर श्रृंगाल के साथ ककड़ियां खाया करता था। प्रातःकाल दोनों अपने-अपने स्थान पर चले जाया करते थे।

एक दिन उस गधे ने श्रृंगाल ने कहा, “भानजे! देखो, आज की रात कितनी सुहानी है। चन्द्रमा चमक रहा है, बयार बह रही है, भीनी-भीनी सुगन्ध आ रही है। ऐसे में मेरा मन गाना गाने को कर रहा है। बताओ कौन से राग का गाना गाऊं?”

श्रृंगाल बोला, “मामा! क्यों व्यर्थ में आपत्ति को निमंत्रण दे रहे हो? हम लोग यहां चोरी करने आए हैं। चोरों और व्यभिचारियों को चाहिए कि वे स्वयं को छिपाकर रखें। कहते हैं कि जिस व्यक्ति को खांसी आती हो उसको दूसरी स्त्री के पास नहीं जाना चाहिए और जो व्यक्ति रोगी हो उसको अपनी जीभ पर नियंत्रण रखना चाहिए।”

“और मामा! आपका स्वर भी तो मधुर नहीं है। उसे सुनकर खेत के रखवाले जाग जाएंगे। तब फिर वे या तो आपको मार डालेंगे या फिर बांध देंगे। इसलिए चुपचाप अमृत के समान इन ककड़ियों को खाओ, गाने-वाने के फेर में मत पड़ो।”

गधा कहने लगा, “तुम जंगली हो न इसलिए संगीत के विषय में तुम्हें न कोई ज्ञान है और न ही तुमको उसमें मजा आता है।” “मामा! शायद तुम ठीक कहते हो। किन्तु तुम्हें ही गाना कहां आता है, तुम तो रेंकते हो।”

“क्या मूर्खता की बातें करता है! तू कहता है मुझे गाना नहीं आता और मैं कहता हूं कि मुझे सारा संगीत-शास्त्र कंठस्थ है। स्वर क्या होते हैं, उनके कितने भेद होते हैं, उन भेदों को क्या कहते हैं आदि-आदि। फिर भी तुम कहते हो कि मुझे गाना नहीं आता?” श्रृंगाल समझ गया कि गधे को गाने की सूझी है।

अतः उसने कहा, “मामा! यदि यही बात है तो मैं इस बाड़े के बाहर बैठकर खेत की रखवाली करता हूं, तुम निश्चिंत होकर अपना गाना गाओ।” श्रृंगाल खेत के बाहर होकर सुरक्षित स्थान पर बैठ गया। उसके जाते ही गर्दभ ने रेंकना आरम्भ किया। जल्द ही उसकी आवाज को सुनकर खेत का रखवाला क्रोध से पागल होकर दौड़ा हुआ आया। खेत में जब उसने गधे को देखा तो उसको इतना मारा, इतना मारा कि वह वहीं पर चित हो गया।

रखवाले को इतने ही में सन्तोष नहीं हुआ। उसने उस गधे के गले में एक भारी ऊखल बांध दी और स्वयं निश्चंत होकर सो गया। रखवाले के जाते ही गधा उठ गया। कहते हैं कि कुत्ते, घोड़े और खासकर गधे को मार की पीड़ा कुछ ही क्षणों तक रहती है। गधा उस ऊखल के साथ खेत के बाहर जाने लगा।

उस समय श्रृगाल बोला, “मामा! मैंने कितना मना किया था किन्तु तुम माने नहीं। अब देखो कितना सुन्दर मणि उपहार रूप में तुम्हारे गले में लटका हुआ मिल गया है।”

किसी ने ठीक ही कहा है जो स्वयं बुद्धिहीन हो और मित्र का कहना भी न माने वह व्यक्ति मुसीबत में पड़ जाता है।”

(साभारः पंचतंत्र की कहानियां

छोटे का भी साथ भला भेजें



किसी नगर में ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसको किसी आवश्यक कार्य से एक दिन किसी अन्य ग्राम को जाना था। उसने जब अपनी माता से गांव जाने की बात कही तो उसकी मां ने कहा, “अकेले मत जाना, किसी को साथ ले लेना।”

बेटा बोला, “मां! चिन्ता मत करो। रास्ता भी ठीक ही है और मुझे जाना जरूरी है, इसलिए अकेला ही जा रहा हूं।” मां का मन नहीं माना। वह समीप के जलाशय में गई और वहां से एक केकड़े को पकड़ लाई। उसे अपने पुत्र को देती हुई बोली, “बेटा! लो, इसे साथ ले लो। मार्ग में यह तुम्हारा सहायक सिद्ध होगा।”

माता की आज्ञा मानकर उसने उस केकड़े को लिया और कपूर की डिबिया में रखकर उसे थैले में डाल दिया। इस प्रकार वह वहां से चला गया। कुछ दूर जाने पर जब दोपहर की धूप बड़ी तेज हो गई तो वह रास्ते में एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम करने लगा। उसे उसी प्रकार विश्राम करते हुए नींद आ गई।

कुछ देर बाद वृक्ष के कोटर से एक सर्प निकला और वह ब्राह्मण के पास आया। सर्प को कपूर की महक अच्छी लगती है। उसने उस ब्राह्मण को तो नहीं छेड़ा पर उसके थैले को फाड़कर कपूर तक पहुंच गया। उसने ज्यों ही कपूर की डिबिया खोली कि केकड़े ने बाहर निकलकर उस सर्प को मार डाला।

नींद खुलने पर ब्राह्मण की दृष्टि वहां पर मरे पड़े सर्प पर गई। समीप ही कपूर की डिबिया खुली थी। ब्राह्मण समझ गया कि इस केकड़े ने ही सर्प को मारा होगा। उस समय उसको माता का कथन याद हो आया। तब उसको अपने सहयात्री का महत्व भी समझ में आ गया। उसके बाद उस ब्राह्मण ने अपनी आगे की यात्रा पूर्ण की। इसलिए कहा जाता है कि यात्रा के समय साथ में रहने वाला अत्यन्त निर्बल व्यक्ति भी सहायक ही होता है।

(साभारः पंचतंत्र की कहानियां

शनिवार, 30 मई 2009

काव्या बनीं 'स्पेलिंग बी' चैंपियन



अमरीका के कैंसस में रहने वाली भारतीय मूल की काव्या शिवशंकर ने मशहूर 'स्क्रिप्स स्पेलिंग बी' चैंपियंस ख़िताब जीत लिया है. 13 साल की काव्या ने महीनों के प्रशिक्षण के बाद नौ शब्दों की सही स्पेलिंग बताई और विजेता बनीं.
प्रतियोगिता में कुल मिलाकर 293 प्रतिस्पर्धियों ने हिस्सा लिया. इनमें 28 प्रतियोगी ग़ैर-अमरीकी देशों के भी थे.

आख़िरी दौर में काँटे की टक्कर हुई, लेकिन बाज़ी काव्या के हाथ लगी. उन्होंने ‘laodicean’ शब्द की सही स्पेलिंग बताई और ख़िताब पर कब्ज़ा किया.

प्रतियोगिता की ख़ासियत ये है कि इसमें भारतीय मूल के अमरीकियों का जलवा रहा है. पिछले 11 वर्षों में वह भारतीय मूल की सातवीं अमरीकी हैं, जिन्हें चैंपियन बनने का गौरव हासिल हुआ है.

दबदबा

प्रतियोगिता में नौ से 15 साल की उम्र के छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया. दिलचस्प तथ्य ये है कि 33 प्रतियोगियों की मुख्य भाषा अँगरेज़ी नहीं थी.

काव्या पहले भी तीन बार इस प्रतियोगिता के टॉप 10 में पहुँच चुकीं थीं, लेकिन उन्हें ख़िताब नहीं मिल सका था.


मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा है. ऐसा नहीं लगता कि सचमुच में ऐसा हुआ है


काव्या शिवशंकर
काव्या को पुरस्कार के रूप में एक चमचमाती ट्रॉफ़ी के अलावा 30 हज़ार डॉलर का नक़द इनाम भी मिला.

ख़िताब जीतने के बाद काव्या ने कहा, “मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा है. ऐसा नहीं लगता कि सचमुच में ऐसा हुआ है.”

काव्या की माँ मिर्ले भी अपनी बेटी की इस उपलब्धि से गदगद हैं. उन्होंने कहा, “ये किसी सपने के सच होने जैसा है. हम इस लम्हे का इंतज़ार कर रहे थे.”

वो कहती हैं, “हमने खाना-पीना नहीं छोड़ा था. ऐसा भी नहीं था कि हमें नींद नहीं आ रही थी, लेकिन हमारा लोगों से मिलना-जुलना बहुत कम हो गया था.”

काव्या ने इस प्रतियोगिता के लिए कड़ी मेहनत की और गहन प्रशिक्षण लिया. यही वजह रही कि माता-पिता काव्या का जन्मदिन भी नहीं मना सके.

काव्या कहती हैं, “स्पेलिंग मेरे जीवन में बहुत मायने रखती हैं.”

उनका कहना है कि वो न्यूरोसर्जन बनना चाहती हैं, लेकिन स्पेलिंग की जगह कोई नहीं ले सकता.

और जब ‘acrocephaly’, ‘glossopharyngeal’ और ‘vestibulocochlear’ जैसे शब्द न्यूरोसर्जरी से जुड़े हों, तो काव्या को फ़िक्र करने की क्या ज़रूरत है

शुक्रवार, 29 मई 2009

यूं कम हो जाएगी टीवी देखने की आदत



अमरीकन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार बारह वर्ष तक के बच्चों को प्रतिदिन एक घंटे से अधिक टेलीविजन नहीं देखना चाहिए। यदि आपका बच्चा इससे अधिक समय तक टीवी देखता है तो उसे मोटापे व आंख की समस्या हो सकती है। इसके अलावा उसकी क्रियेटिविटी भी कम हो जाती है। आइये, हम आपको बताते हैं कि बच्चों को ज्यादा टीवी देखने से कैसे रोका जाए
* अपने बच्चे के टीवी देखने की समय सीमा निर्धारित करें। यदि यह सीमा एक घंटे है तो बच्चों को समझाएं कि इससे ज्यादा टीवी देखने के लांगटर्म में क्या नुकसान हैं।
* अपने लिए भी टीवी देखने की समय सीमा बनायें और इसका कड़ाई से पालन करें। आपको देखकर बच्चा प्रेरित होगा।
* बच्चा जब आपके कहने के अनुसार निर्धारित समय तक टीवी देखने लगे, तो उसकी तारीफ करें। यह बात अपने पडोसियों, बच्चों के ग्रैण्ड पैरेन्ट्स, दोस्तों और शिक्षकों को बतायें, जब सभी उसकी तारीफ करेंगे तब बच्चा इस आदत को खुशी-खूशी बनाये रखेगा।
* बच्चे से पूछें कि उसको कौन से शो ज्यादा पसंद है। उस शो की रिकाडग कर लें और बाद में बच्चों को दिखायें। रिकार्डेड शो दिखाते समय कर्मिशयल ब्रेक में दिखाये जाने वाले विज्ञापनों को फास्ट फारवर्ड कर दें। इससे टीवी का तीस मिनट का शो आप बीस मिनट में बच्चे को दिखा देंगे।
* बच्चों के कमरे या बेडरूम में कभी भी टेलीविजन न रखें, क्योंकि आपके सोने के बाद बच्चे टीवी देख सकते हैं। टीवी हमेशा कॉमन प्लेस में रखें, ताकि बच्चे क्या देख रहे हैं, यह निगरानी घर का कोई भी सदस्य कर सके। लेकिन ध्यान रखें- बच्चे को यह न पता चले कि उस पर नजर रखी जा रही है अन्यथा वह विद्रोही हो सकता है।
* टेलीविजन के सामने सोफा या बेड न रखें क्योंकि सोफा रखने पर बच्चा आराम से बैठकर या लेटकर देर तक टीवी देख सकता है। टीवी के पास चेयर रखी जानी चाहिए।
* बच्चों को यह बतायें कि टेलीविजन में दिखायी जाने वाली हर चीज सच नहीं होती। हिसा से भरे कार्यक्रम वास्तविक जिन्दगी की तस्वीर नहीं हैं। केवल शैक्षिक कार्यक्रमों से सीख लेनी चाहिए और मनोरंजक शो केवल मनोरंजन के लिए होते हैं, उन्हें अपने जीवन में उतारना नहीं चाहिए।

गुरुवार, 28 मई 2009

बूझो तो जाने



अक्सर बुरा तनाव होता है
लेकिन मैं गुणकारी,
जल पर चीजो को तैरा दूँ
जिससे करता यारी |

मैं ऐसा गुण होता बच्चों
जो विधुत उपजाए,
उपस्थित आवेशो की भी
मेरा गुण दिखलाए |

श्वेत प्रकाश साथ रंगों का
पुंज जगत में प्यारा,
क्या कहते हैं सोच-समझकर
बोलो नाम हमारा |

पानी के तल पर क्यों सिक्का
उठा हुआ है दिखता,
मैं हूँ घटना कौन, हाथ
इसमें मेरा ही मिलता?

अति साधारण हूँ मशीन मैं
काम तुम्हारे आऊं,
कपडे काटूं, दुरी नापूं
सुविधाएँ दे जाऊं |


उत्तर - पृष्ट तनाव, घर्सन, वर्णक्रम, अपवर्तन, उत्तोलक

बुधवार, 27 मई 2009

माई इंडिया - गोवर्धन यादव



ब्लेकबोर्ड पर हिन्दुस्तान का नक्शा बनाकर शहरों का नाम लिख रहा था। दिल्ली को चिन्हित कर दिल्ली भर लिख पाया था कि तभी एक हवाईजहाज स्कूल के ऊपर से घरघराता निकल गया। क्लास के बच्चों का ध्यान उस तरफ जाना स्वाभाविक था। थोड़ी देर पश्चात् वह फिर से स्कूल के ऊपर से गुजरा और आगे जाकर लौट आया। उसने पूरे गांव के तीन-चार चक्कर लगाए और जमीन पर उतरने लगा। हवाईजहाज को नजदीक से देखने की प्रबल इच्छा को बच्चे दबा नहीं पाये, मैं कुछ कहूं इससे पूर्व वे अपनी कक्षा छोड़कर बाहर इकट्ठे होकर शोर मचाने लगे।

आकाश में उड़ रहा वह एक हेलीकाप्टर था जो धीरे-धीरे जमीन की ओर बढ़ रहा था। उसके विशाल डैने अब भी तेजी से चक्करधन्नी काट रहे थे। सूखे पत्ते फरफराकर आकाश में ऊंचा उड़ने लगे और धूल का एक बड़ा गुबार उठने लगा। हेलीकाप्टर अब नीचे आ चुका था। उसके बड़े-बड़े पंख अब भी चारों ओर चक्कर काट रहे थे। आदिवासी महिलाएं एवं पुरुष अपनी-अपनी झोपड़ी छोड़कर अन्यत्र भागकर एवं पेड़ों की आड़ में छुपकर नजारा देखने लगे। शायद वे भयभीत हो गए थे। कुछ आदिवासी महिलाएं अपने दूध पीते बच्चों को बंदरिया की तरह छाती से चिपकाए बाहर आकर खड़ी हो गईं और विस्मित नजरों से नजारा देखने में लग गईं। घुटने से ऊपर और कमर के नीचे मैली-कुचैली साड़ी के छोर को बांध रखा था और शेष से अपनी पीठ तथा उरोजों को ढांक रखा था। एक शिशु ने तो साड़ी का छोर हटाया और सूखे से लटके वक्ष को चूसने लगा। उसके उरोज कब छिटककर बाहर आ गए इसका तनिक भी ध्यान उसे नहीं रहा क्योंकि वह उतरते जहाज को देखने में तल्लीन थी।

हेलीकाप्टर के विशाल डैने अब थम चुके थे। हवा में उड़ रहे सूखे पत्ते धरती पर आकर गिरने लगे। धूल का गुब्बार अब शांत पड़ गया था। हेलीकाप्टर अब सभी को साफ-साफ नजर आने लगा था।

हेलीकाप्टर के उतरते समय जो तेज हवा का झोंका आया उससे स्कूल की एक चौथाई दीवार जो गिरने-गिरने को हो रही थी भरभराकर गिर पड़ी। मैं मन ही मन उस जहाज को और उसमें सवार चालक को कोस रहा था। पर तुरंत ही उन्हें धन्यवाद भी देने लगा कि यदि कक्षा चल रही होती और उस समय वह दीवार सरकती तो न जाने कितने बच्चे अपाहिज हो जाते अथवा मर जाते।

हेलीकाप्टर का दरवाजा खुला। 6-6½ फिट का एक कद्दावर अधेड़-नौजवान सफेद झक धोती-कुर्ता, सिर पर गांधी टोपी लगाये, आंखों पर बेशकीमती ऐनक चढ़ाए जमीन पर उतरने का उपक्रम कर रहा था। उसके चमचमाते जूते दूर से ही दिखलाई पड़ते थे। उसने उतरकर अपनी कमर पर हाथ रखा और एकटक हम लोगों की ओर देखने लगा। उसने चारों तरफ नजर फैलाई। दूर-दूर तक नंगे-अधनंगे बच्चे एवं आदिवासी महिलाएं पुरुष घेरा बनाये टुकुर-टुकुर देख रहे थे। काफी देर तक वह वैसा ही खडा रहा। मेरे मन के अन्दर भारतीय परम्पराएं हिलोरे ले रही थीं। मैंने आगे बढ़कर दोनों हाथ जोड़कर भारतीय मुद्रा में नमस्ते की। अब उसके शरीर में कुछ हरकतें हुईं। उसने कमर पर से हाथ अलग किए और दोनों हाथ जोड़कर मेरा अभिनंदन स्वीकार किया। मैं अब उसके नजदीक पहुंचने का उपक्रम करता हूं। उसने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए और मेरे बढते हाथों को अपने मजबूत हाथों से जोड़ दिया।

मैंने सुस्वागतम-सुस्वागतम कहते हुए अपनी ओर से बात करने की पहल की, ''देखिए श्रीमान... इस गोंड़ी बस्ती में जाहिर है कि यहां न तो सर्किट हाउस है और न ही रेस्ट हाउस, मेरा अपना मकान उसे झोंपड़ा ही कहना ठीक होगा (हाथों का इशारा करते हुए) वो रहा, चलिए वहीं चलते हैं। आप चलकर विश्राम कीजिए और अपनी सेवा करने का मौका दीजिए।''

मैं आगे-आगे और वह मेरे पीछे यंत्रवत् चला आ रहा था। हमारे पीछे आदिवासी बच्चे महिलाएं एवं पुरुषों की भीड़ एक घेरा बनाते हुए चली आ रही थी। सामने दालान में एक कुर्सी, जिसका एक हत्था कई महीने पहले टूट चुका था, धूल-धूसरित पड़ी थी। अपने कंधे पर लटके गमछे से मैंने कुर्सी साफ की और उनसे बैठने का निवेदन किया। बाड़ी के उस तरफ खड़ी भीड़ अंदर की प्रत्येक गतिविधियों को देख रही थी।

कुर्सी पर बैठने के बाद उन्होंने अपने माथे पर चू आया पसीना पोंछना शुरू किया। इसी बीच मैंने नजदीक पड़ी चारपाई को बिछाया और एक कोने में बैठ अपनी जोरू को आवाज लगाते हुए कहा, ''अरी सुनती हो भागवान्, देखो हमारे यहां कौन आया है। भाई चायपान की कुछ तो व्यवस्था करो।'' हमारे घर पहुंचने के पहले ही वह पिछवाड़े से होते हुए घर पहुंच गई थी।

एक स्टील की प्लेट में पानी से भरे गिलास लेकर वो बाहर निकली और कहने लगी, ''दादाजी, लीजिए पानी पीजिए, कुएं का ताजा पानी है, एकदम ठंडा है।''

तभी मेरी चेतना जागी और मैंने तपाक् से कहा, ''श्रीमान, आप हेलीकाप्टर के साथ मिनरल वाटर लाए होंगे। किसी को भेजकर बुलवा लेते हैं। कुएं का पानी क्या आप पी पाएंगे? कहीं गला खराब हो गया तो यहां न तो कोई डॉक्टर है न ही कोई नाड़ी पकड़ वैद्य।''

मेरा इतना कहना ही था कि वे ठहठहाकर हंस पड़े और पानी का ग्लास उठाते हुए उन्होंने पूछा, ''मैं तो आपका परिचय लेना ही भूल गया। अच्छा ये बताइए आपका क्या नाम है और आप यहां क्या करते हैं?''

''जी सर, मेरा नाम गोवर्धन है। मैं यहां पर विगत 20 साल से प्राइमरी में पढ़ा रहा हूं।'' मैंने कहा।

'अच्छा-अच्छा तो तुम मास्टर हो, तभी इतना अच्छा बोल बता लेते हो। (और पानी से हलक गीला करते हुए) अच्छा तो ये बताओ मासाब कितने शिक्षक हैं यहां पर?'

'मुझे मिलाकर कुल चार।'

'और तो दिखाई नहीं पड़ते।'

'दरअसल बात ये है श्रीमान् कि वे दूर शहर से आते हैं। दो-चार माह में एकाध बार आ जाते हैं। वो भी तनखाह लेने के लिए। तनखाह लेकर गए कि फिर पता नहीं कब आ पाएंगे?'

'क्यों? वे स्कूल नहीं आते तो फिर करते क्या हैं?'

'ऐसा है श्रीमान्, एक मासाब ने अपनी पत्नी के नाम डाकघर बचत योजना के अंतर्गत एजेन्सी ले रखी है। जाहिर है कि वे पैसा क्लेक्शन में व्यस्त हो जाते हैं। दूसरे ने अपनी शोभा कन्स्ट्रक्शन कंपनी खोल रखी है। ठेकेदारी करते हैं। मकानबिल्डिंगें आदि बनवाते हैं। और तीसरे मासाब हमारी यूनियन के लीडर हैं। ये हम लोगों के हक के लिए सरकार से लड़ते रहते हैं। उन्हीं की मेहनत का फल है कि अब हमारी अच्छी तनखाह बनने लगी है,' मैंने कहा।
''तो तुम मास्टरी के अलावा कुछ नहीं करते?''

''नहीं श्रीमान् नहीं। मैं कुछ भी नहीं कर पाया। कोरा मास्टर बना बैठा हूं। गांधीजी ने एक बार आम सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि पढ-लिखकर गांवों में चले जाना चाहिए। वहां ग्रामवासियों को भी शिक्षित बनाना चाहिए तभी हिन्दुस्तान में सही आजादी आ पायेगी। पता नहीं उनकी बात सुनकर मुझ पर क्या पागलपन छाया कि मैं शहर छोड़कर गांव आ गया। और फिर यहां का ही होकर रह गया। सुना है कि सरकार शिक्षकों का सम्मान करती है। तभी से श्रीमान मेरी भी एक इच्छा है कि मुझे राष्ट्रपति जी से विशेष सम्मान मिले।''

''जैसा कि मैं देख भी रहा हूं कि तुमने गांव के लिए काफी कुछ किया है। तुम्हें अब तक तो सम्मान मिल जाना चाहिए था।''

थूक से गला तर करते हुए मैंने कहा, ''श्रीमान्, अभी तक आपने अपना परिचय नहीं दिया और हम हैं कि बड़बड़ किए जा रहे हैं।'' इसी बीच पत्नी ने हांक लगाई, ''अजी सुनते हो, वो डिराईवर साहब कब के बाहर खड़े हैं, तनिक उन्हें अंदर तो बुला लो।''

अपनी भूल को छिपाते हुए मैं खीं-खीं करके हंस पड़ता हूं और उनसे अंदर आने को कहता हूं। फिर पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए मैंने उन्हें समझाया कि जीप-मोटर चलाने वाले को ड्राईवर और हवाईजहाज चलाने वाले को पायलट कहते हैं।

मैं कुछ निर्देश दूं इससे पूर्व ही वह गरमा-गरम पकौड़े और चाय लेकर आई। एक हिलिंग डूलिंग मेज पर उन्होंने प्लेट करीने से जमा दिया और एक तरफ पानी से भरे गिलास एवं एक लोटा।

पकौड़ों की प्लेट उनकी और पायलट साहब की ओर बढ़ाते हुए मैंने अपनी बात जारी रखी, ''तो श्रीमान् अपना परिचय तो दीजिए।''
''मासाब मेरा नाम भारत है।''
''जाहिर है कि आप मनोज कुमार तो नहीं हैं मैंने उनकी फिल्म देखी है। मैं रूबरू तो नहीं, पर उन्हें पहचानता जरूर हूं।''
''अरे नहीं भई मेरा नाम भारत है भारत। तुम चाहो तो मुझे हिन्दुस्तान भी कह सकते हो या फिर मॉय इंडिया।''
'अरे आप तो अच्छा-खासा मजाक भी कर लेते हैं,'' मैंने दांत निपोरते हुए कहा।
'तुम मुझे भारत मानने को तैयार नहीं इसमें मेरा क्या कसूर है। तुम मान लो तब भी और न मानो तब भी मैं भारत हूं और भारत ही रहूंगा।'

'अच्छा भाई भारत ही सही। पर ये तो बताइए आप रहने वाले कहां के हैं और आपकी उम्र क्या है? आप क्या करते हैं? हेलीकाप्टर में बैठकर आए हैं जाहिर है कि आप बहुत बड़े बिजनेस मैन हैं अथवा कोई धन्ना सेठ?'

'सुनिए मासाब, मैं किसी एक प्रदेश में रहता हूं तो बताऊं (आकाश की तरफ सिर उठाकर देखते हुए) मैं तो सारे प्रदेशों में एक साथ रहता हूं वैसी मेरी उमर तो हजारों हजार साल की है और वर्तमान में 50 वर्षों की। मेरे हजारों-लाखों की तादाद में बच्चे हैं। कई बडे-बड़े कल कारखाने चला रहे हैं तो कई खेती कर रहे हैं यानि सुई से लेकर हवाईजहाज तक बनाते हैं। मैं उनकी मेहनत-मशक्कत से काफी खुश हूं और साथ ही दुखी भी हूं।'

'दुख किस बात का श्रीमान्?' मैंने पूछा।

'कुछ ऐसी भी निठल्ली बेईमान औलाद निकली जिसने मेरी नजरों से छुपाकर करोड़ों-अरबों का गोलमाल किया। यहां तक कि भोली-भाली जनता को मेरे प्रिय गांधी के नाम का हवाला देकर बड़े-बड़े हवाला कांड खड़े कर दिए और न जाने सहस्रों रुपयों के घोटालों का पहाड़ भी खड़ा कर दिया। नकली चमक-दमक के चक्कर में विदेशों से भी कर्जा लेने लगे। स्वदेशी स्वावलम्बन तो वे भूल ही चुके हैं। गरीबों के नाम पर योजनाएं चलाते और अपनी गरीबी दूर करने से भी नहीं चूकते और कहते हैं कि हम सूरज की ओर चार कदम बढा चुके हैं। पता नहीं, इनके मन में सम्पत्ति बनाने की ललक क्यों पलने लगी है।' उन्होंने एक सांस में पता नहीं कितना कुछ बोल डाला।

'अरे छोड़िए भी साहब घर गिरस्ती की बातें। ये बताइए आपका पूरा शरीर जख्मी दिखलाई पड़ रहा है। क्या राज है?' मैंने अपनी ओर से प्रश्न उछाला।

'मेरी कुछ संतानें ऐसी भी हो चुकी हैं जिस पर भारत ही क्या समूचा संसार भी गर्व करता है, उनका आदर करता है। उन्होंने मेरी सेवा में अपना संपूर्ण जीवन, सारा सुख-वैभव तक न्यौछावर कर दिया। आज भी ऐसी संतानें हैं जो भरपूर फसल उगाते हैं, अपना स्वयं का पेट पालते हैं और पूरे देशवासियों का भी। कुछ तो चौखट पर खड़े होकर शत्रुओं के हमलों से मेरी हिफाजत करते हैं और हंसते-हंसते अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं। लहलहाती फसलें, हरे भरे वृक्ष देखकर मेरी तबीयत खुश हो जाती है। बच्चों के मन में दया का भाव, प्रेम-ममता, करुणा, आदर्श और त्यागमय जीवन-समर्पण आदि देखकर तबीयत गद्गद् हो जाती है। यह मुझे हमेशा प्राणवायु की तरह ताजगी देते रहती है। यही कारण है कि मैं हमेशा हृष्ट-पुष्ट दिखाई देता हूं और दुख इस बात का है कि मेरा छोटा लड़का खोटा सिक्का निकला। लड़-झगड़कर अलग रहने लगा। उसकी लिप्साएं उसका कपटपूर्ण व्यवहार आज भी उतना ही है जितना पहले कभी था। बात-बात में हथियार निकाल लेता है। गोला बारूद से ऐसे खेलता है जैसे दीपावली में छोटे बच्चे टिकली वाला तमंचा चलाते हैं। मेरे सिर पर, कंधों पर जो घाव देख रहे हो न मासाब, ये सब उस नामुराद की वजह से ही हैं। मेरी छाती में तथा पैरों में जो घाव रिसते देख रहे हैं न, ये भी उसकी कारस्तानी है। मेरे मन में यही दु:ख बार-बार सालता रहता है कि वह कब होश में आयेगा। इन जख्मों से मुझे दर्द इसलिए भी नहीं होता कि मेरे अपनों ने ही जख्म दिए हैं। कोई और होता तो... तो पता नहीं मैं क्या-क्या कर डालता। मेरे मन में अब भी यही आशा है, विश्वास है कि वह एक दिन अपने किए पर पछतायेगा। उसकी आंखों में पश्चाताप के आंसू जिस दिन छलछला आएंगे उस दिन मेरे ये सारे जख्म अपने आप भर जाएंगे।'

बोलते-बोलते भारत जी को पता नहीं क्या हुआ तेजी से कुर्सी पर से उठे और तेज चाल चलते हुए हेलीकाप्टर के पास पहुंचे। पायलट भी पीछे-पीछे सरपट भागा जा रहा था। उन्होंने उसे चालू करने की आज्ञा दी और फर्र से उड़ गए।

मैं पीछे-पीछे भारत जी, भारत भाई चिल्लाते-चिल्लाते भागा जा रहा था, तब तक तो वे आकाश की ऊंचाइयों पर पहुंच चुके थे। मेरा इस तरह चिल्लाना-चीखना देखकर पत्नी जागी और कहने लगी क्या कोई सपना देख रहे थे। मैंने चेतना में लौटते हुए कहा, 'हां, सपने में भारत जी आए थे।'

साभार - सृजन गाथा.कॉम

चेहरे की खूबसूरती का राज फेस मास्क



बाजार में तरह-तरह के फेस मास्क उपलब्ध हैं जैसे संतरे का, चंदन का और मुल्तानी मिट्टी का पर ये काफी महंगे होते हैं। साथ ही उन्हें खरीदते समय भी विशेष सावधानी बरतनी आवश्यक है जैसे-आप जब भी कोई फेस मास्क खरीद रही हैं तो अच्छी कंपनी का ही लें और प्रसाधन का प्रयोग करने से पूर्व उसमें प्रयुक्त सामग्री के विषय में पढ़ लें। कहीं किसी से आपकी त्वचा को एलर्जी न हो। एक्सपायरी तिथि भी अवश्य पढें। साथ ही फेस मास्क के प्रयोग की विधि पढे बिना उसे प्रयोग मत करें। सबसे जरूरी है अपनी त्वचा के प्रकार यानी तैलीय, रूखी, मिश्रित आदि ध्यान में रखते हुए उसी के अनुरूप फेस मास्क का चुनाव करें। आकर्षक पैकिंग से प्रभावित होकर कोई प्रसाधन न खरीदें।
फेस मास्क का प्रयोग करते समय भी कुछ बातों को ध्यान में रखें। फेस मास्क का प्रयोग साफ हाथों से करें। फेस मास्क का प्रयोग करते समय आपका चेहरा बिल्कुल साफ होना चाहिए। उस पर कोई मेकअप नहीं लगा होना चाहिए। अगर आपकी त्वचा रूखी है तो किसी साफ कपडे क़ो पानी में भिगोकर चेहरा उससे अच्छी तरह साफ करें। इससे चेहरे की त्वचा के रोमकूप खुल जाएंगे और फेस मास्क अधिक प्रभाव छोडेग़ा। अगर आपकी त्वचा तैलीय है तो ऐसा न करें। इससे आपको मुंहासे हो सकते हैं।
फेस मास्क लगाने से पूर्व अपने बालों को अच्छी तरह से पीछे बांध लें। मास्क पेस्ट साफ उंगलियों से स्पेटयूला से लगाएं। आंखों के आस-पास की त्वचा पर इसे न लगाएं। मास्क पेस्ट नरम हाथों से लगाए और त्वचा पर एकसार लगाएं।
कुछ आसान फेस मास्क तैयार करने व प्रयोग करने की विधि: त्वचा पर निखार लाने के लिए मलाई में जरा सी हल्दी मिला दें और 15-30 मिनट तक लगा रहने दें। फिर हल्के गर्म पानी से चेहरा धो लें ताकि तैलीयता समाप्त हो जाए।
अगर आपके रोमछिद्र खुले हुए हैं तो क्ले मास्क उसे कसेगा और त्वचा को ताजगी देगा। मुल्तानी मिट्टी में थोड़ी सी मलाई मिला लें और मिश्रण को त्वचा पर लगा कर सूखने दें। फिर चेहरे को पानी से साफ कर लें। टमाटर भी बडे रोमछिद्रों वाली त्वचा के लिए अच्छा है।

रूखी त्वचा के लिएफेस मास्क
एक चम्मच शहद व एक चम्मच अंडे का सफेद भाग मिला कर चेहरे पर लगाएं और सूखने पर धो लें।
रूखी त्वचा के लिए अंडे का पीला भाग लगाना भी उत्तम है क्योंकि यह विटामिन ए से भरपूर होता है। एक चम्मच अंडे का पीला भाग लें। उसमें शहद व आलिव आयल की कुछ बूंदें अच्छी तरह से मिलाएं और चेहरे पर लगाएं। अगर आपकी त्वचा बहुत रूखी है तो नींबू और संतरे का प्रयोग न करें।
एक चम्मच मलाई में थोड़ा सा बेसन, हल्दी व दूध डालकर पेस्ट बना लें। सूखने पर धो दें। इससे रूखी त्वचा में नमी बनी रहेगी।
तैलीय त्वचा के लिए फेस मास्क
खीरे को कद्दूकस करके उसमें दही मिला कर पेस्ट बना लें व 15 मिनट तक चेहरे पर लगाएं। फिर पानी से साफ कर लें। यह मास्क तैलीय त्वचा के लिए विशेष लाभदायक है।
अंडे की सफेदी का मास्क भी खुले रोम छिद्रों को बंद करता है इसलिए तैलीय त्वचा पर इसका प्रयोग भी लाभप्रद है।

मिश्रित त्वचा के लिए फेस मास्क
ह्व एक चम्मच बेसन में चुटकी भर हल्दी, दूध, कुछ बूंदें बादाम रोगन की डाल कर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर लगाएं। सूखने पर ठंडे पानी से चेहरा साफ कर लें।
ह्व एक चम्मच बेसन में कुछ बूदें ग्लिसरीन व नींबू के रस की मिलाकर लगाएं और 10-15 मिनट बाद पानी से चेहरे को साफ कर लें।

छुट्टियों को यादगार बनाएं



ग्रीष्मावकाश शुरू हो गया है, तुम लोग भी स्वयं को तनावमुक्त व हल्का महसूस कर रहे होगे, क्योंकि होमवर्क करना, पढ़ाई करने की जिम्मेदारी से अब आपको मुक्ति मिल गई है। दिन भर खेल, धमाचौकड़ी करने की कल्पना मात्र से सभी बच्चे प्रफुल्लित रहते हैं, लेकिन ऐसा कुछ समय तक ही रहता है। फिर बच्चों को बोरियत महसूस होने लगती है कि लंबी दुपहरी कैसे बिताई जाए? क्यों न इस बार छुट्टियां सार्थक व ज्ञानवर्द्धक कार्यों में व्यस्त कर इन छुट्टियों को यादगार बनाया जाए।

छुट्टियों में तुम लोग हिंदी व अंग्रेजी के नए शब्द सीख सकते हो सामान्य ज्ञान, चिल्डे्रन नॉलेज, बैंक व अन्य इसी तरह की पुस्तकें पढ़ने से ज्ञान में अभिवृद्धि की जा सकती है। तुम्हें जिस क्षेत्र में भी रुचि हो उसका प्रशिक्षण ले सकते हो। संगीत, वादन, चित्रकला, पेंटिंग अथवा अन्य जो कुछ भी तुम सीखना चाहते हो, उसे सीखें बडे बच्चे बागवानी के कार्यों में बड़ों की मदद कर सकते हो। बागवानी से हमें प्रकृति के बारे में नई-नई बातों को जानने का अवसर मिलता है। कुछ बड़ी लड़कियां, जिन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई में रुचि हो, वे इन्हें सीख सकती है। वैसे भी वर्षभर पढ़ाई की व्यस्तता के कारण इन कलाओं को सीखना संभव नहीं होता। कंप्यूटर के युग में कंम्यूटर की शिक्षा भी प्राप्त की जा सकती है।

जूडो कराटे या अन्य शरीर सौष्ठव संबंधी प्रशिक्षण लिया जा सकता है। यदि किसी विशेष खेल में रुचि हो तो उसकी भी कोचिंग कर सकते हो। दिन भर घर में कैद रहने से अच्छा है कि तुम लोग शारीरिक, मानसिक विकास के लिए हम उम्र बच्चों के साथ खेलो। वैसे सीमित समय तक टीवी देख सकते हो। लगातार टीवी देखते रहने से मानसिक विकास व ज्ञान कुंठित होता है।

गर्मी से कैसे बचें



गर्मी का पारा लगातार ऊपर चढता जा रहा है। गर्मी पिछले कई वर्ष पुराने रिकॉर्ड को तोड रही है। अभी पिछले दिनों अप्रैल में तापमान ने पिछले 50 वर्ष पुराने रिकॉर्ड को तोडा। ऐसे में गर्मी से खुद को कैसे बचाया जाए हम सभी के लिए सबसे बडी समस्या बन गई है। क्योंकि बच्चों के खेल-कूद और पढाई के साथ बडाें की नौकरी तक के सारे काम ऐसे हैं, जिनके साथ समझौता नहीं किया जा सकता है। लेकिन यदि थोडी सी सावधानी बरती जाए तो कई बडी बीमारियों से बचा जा सकता है।

खाने-पीने का रखें ख्याल

गर्मी में खान-पान का महत्व कई गुणा बढ ज़ाता है क्योंकि सर्दियों में फास्ट फूड जैसे गर्म पदार्थ ज्यादा हानिकारक नहीं होते हैं, लेकिन गर्मियों में वही घातक साबित हो सकते हैं। हमें अधिक से अधिक घर का बना भोजन खाना चाहिए। संभव हो तो खाने में हरी सब्जी और ठंडे खाद्य पदार्थों का सेवन करें। ऐसे खाद्य पदार्थ ज्यादा खाएं जिसमें पानी की अधिकता हो। साथ ही पानी का सेवन भी अधिक से अधिक करना चाहिए। वैसे तो हर व्यक्ति को चार-पांच लीटर पानी का सेवन अवश्य करना चाहिए, लेकिन मौसम को देखते हुए इसे बढ़ाया जा सकता है। साथ ही जूस और दूसरे द्रव्य पदार्थ का सेवन करते रहें।

घर से निकलते समय रखें ख्याल

घर से निकलने से पहले पानी पीकर निकलें। हो सके तो पानी की बोतल भी साथ में रखें। छतरी साथ में रखने से अनावश्यक धूप से बचा जा सकता है, जो स्वास्थ्य के साथ-साथ त्वचा को भी धूप से बचाने में सहायक होता है।

धूप में निकलने से बचें

मौसम को देखते हुए कोशिश करें कि धूप में न निकलें। अगर निकलना ही पडे तो शाम या सुबह में निकलने का प्रयास करें। महिलाओं और बच्चों को तो खासतौर से धूप में बाहर निकलने से बचना चाहिए, क्योंकि इनकी त्वचा नाजुक होती है। अगर आप धूप में निकले हैं और अचानक से वातानुकूलित कमरे या ऑफिस में आना पडे, तो एकाएक जाने की बजाय थोडी ठंडी जगह पर रूकने के बाद जाएं।

क्या खाएं क्या नहीं

गर्मी के मौसम में इस मौसम के फल का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककडी ज़ैसे फल शरीर को उचित मात्रा में पानी देने के साथ-साथ गर्मी से लडने की शक्ति भी देते हैं।

मरीज के लिए सावधानियां

ब्लडप्रेशर और मधुमेह जैसी बीमरियों से ग्रस्त मरीजों को गर्मी में खास सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि बढते तापमान में उनकी बीमारी भी बढ़ सकती है। उन्हें इनफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। उन्हें उपरोक्त सावधानियों के साथ-साथ डॉक्टरी सलाह भी लेते रहना चाहिए।

साभार - देशबंधू

पेट की कई समस्याओं का आसान इलाज है हरड़



हरड़ या हरीतकी का वृक्ष 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। प्रधानत: यह निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से बंगाल आसाम तक लगभग पांच हजार फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है तथा पत्तों का आकार वासा के पत्तों जैसा होता है। सर्दियों में इसमें फल आते हैं जिनका भंडारण जनवरी से अप्रैल के बीच किया जाता है। मौटे तौर पर हरड़ के दो प्रकार हैं- बड़ी हरड़ और छोटी हरड़। बड़ी हरड़ में सख्त गुठली होती है जबकि छोटी हरड़ में कोई गुठली नहीं होती।
वास्तव में वे फल जो गुठली पैदा होने से पहले ही तोड़कर सुखा लिए जाते हैं उन्हें ही छोटी हरड़ की श्रेणी में रखा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार छोटी हरड़ का प्रयोग निरापद होता है क्योंकि आंतों पर इसका प्रभाव सौम्य होता है। वनस्पति शास्त्र के अनुसार हरड़ के तीन अन्य भेद हो सकते हैं। पक्वफल, अर्धपक्व फल तथा पीली हरड़। छोटी हरड़ को ही अधिपक्व फल कहते हैं जबकि बड़ी हरड़ को पक्वफल कहते हैं। पीली हरड़ का गूदा काफी मोटा तथा स्वाद कसैला होता है। फलों के स्वरूप, उत्पत्ति स्थान तथा प्रयोग के आधार पर हरड़ के कई अन्य भेद भी किए जा सकते हैं। नाम कोई भी हो चिकित्सकीय प्रयोगों के लिए डेढ़ तोले से अधिक भार वाली, बिना छेद वाली छोटी गुठली तथा बड़े खोल वाली हरड़ ही प्रयोग की जाती है। टेनिक अम्ल, गलिक अम्ल, चेबूलीनिक अम्ल जैसे ऐस्ट्रिंजेन्ट पदार्थ तथा एन्थ्राक्वीनिन जैसे रोचक पदार्थ हरड़ के रासायनिक संगठन का बड़ा हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त इसमें जल तथा अन्य अघुलनशील पदार्थ भी होते हैं। इसमें 18 प्रकार के अमीनो अम्ल मुक्तावस्था में पाए जाते हैं।
बवासीर, सभी उदर रोगों, संग्रहणी आदि रोगों में हरड़ बहुत लाभकारी होती है। आंतों की नियमित सफाई के लिए नियमित रूप से हरड़ का प्रयोग लाभकारी है। लंबे समय से चली आ रही पेचिश तथा दस्त आदि से छुटकारा पाने के लिए हरड़ का प्रयोग किया जाता है। सभी प्रकार के उदरस्थ कृमियों को नष्ट करने में भी हरड़ बहुत प्रभावकारी होती है। अतिसार में हरड़ विशेष रूप से लाभकारी है। यह आंतों को संकुचित कर रक्तस्राव को कम करती हैं वास्तव में यही रक्तस्राव अतिसार के रोगी को कमजोर बना देता है। हरड़ एक अच्छी जीवाणुरोधी भी होती है। अपने जीवाणुनाशी गुण के कारण ही हरड़ के एनिमा से अल्सरेरिक कोलाइटिस जैसे रोग भी ठीक हो जाते हैं।
इन सभी रोगों के उपचार के लिए हरड़ के चूर्ण की तीन से चार ग्राम मात्रा का दिन में दो-तीन बार सेवन करना चाहिए। कब्ज के इलाज के लिए हरड़ को पीसकर पाउडर बनाकर या घी में सेकी हुई हरड़ की डेढ़ से तीन ग्राम मात्रा में शहद या सैंधा नमक में मिलाकर देना चाहिए। अतिसार होने पर हरड़ गर्म पानी में उबालकर प्रयोग की जाती है जबकि संग्रहणी में हरड़ चूर्ण को गर्म जल के साथ दिया जा सकता है।
हरड़ का चूर्ण, गोमूत्र तथा गुड़ मिलाकर रात भर रखने और सुबह यह मिश्रण रोगी को पीने के लिए दें इससे बवासीर तथा खूनी पेचिश आदि बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा इन रोगों के उपचार के लिए हरड़ का चूर्ण दही या मट्ठे के साथ भी दिया जा सकता है।
लीवर, स्पलीन बढऩे तथा उदरस्थ कृमि आदि रोगों की इलाज के लिए लगभग दो सप्ताह तक लगभग तीन ग्राम हरड़ के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। हरड़ त्रिदोष नाशक है परन्तु फिर भी इसे विशेष रूप से वात शामक माना जाता है। अपने इसी वातशामक गुण के कारण हमारा संपूर्ण पाचन संस्थान इससे प्रभावित होता है। यह दुर्बल नाडि़यों को मजबूत बनाती है तथा कोषीय तथा अंर्तकोषीय किसी भी प्रकार के शोध निवारण में प्रमुख भूमिका निभाती है।
हालांकि हरड़ हमारे लिए बहुत उपयोगी है परन्तु फिर भी कमजोर शरीर वाले व्यक्ति, अवसादग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्रियों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

साभार - देशबंधु

नेचरल रहें, खूबसूरत लगें



गर्मियों में आप कितना ही वॉटरप्रूफ मेकअप कर लें, लेकिन वह मेल्ट हो ही जाता है।

सन प्रोटेक्शन
गर्मियों में आप जो लिप बाम यूज करती हैं, उसे यूज करने से पहले फ्रिज में रख दें। जब भी आप इस ठंडे लिप बाम को लगाएंगी, तो बेहद फ्रेश फील करेंगी। इस मौसम में आप फ्रूट फ्लेवर वाले लिप बाम भी ट्राई कर सकती हैं। इनकी खुशबू आपको गर्मी में भी कूल बनाए रखेगी। स्किन एक्सपर्ट डॉ. बिंदु कहती हैं कि बाजार में चिपस्टिक, लिप ग्लॉस, लिप बाम में कई वैराइटीज हैं, जिनका एसपीएफ 25 या इससे ज्यादा होता है। इससे धूप का असर आपके होंठों पर नहीं पड़ता और आपके होंठ न तो काले होते हैं और न ही फटते हैं।

अगर आप स्विमिंग या फिजिकल एक्टिविटी करती हैं, तो उस समय हल्का वॉटरप्रूफ मेकअप लगाएं। मेकअप एक्सपर्ट विम्मी जोशी कहती हैं कि ग्लैमरस दिखने के लिए वॉटरप्रूफ ब्यूटी प्रॉडक्ट्स इस्तेमाल करें। गर्मियों में लिक्विड फाउंडेशन लगाएं। इससे स्किन सॉफ्ट, फ्रेश और क्लीन दिखेगी। चेहरे पर फाउंडेशन लगाने से पहले हल्का कंसीलर लगाएं और फिर डस्टिंग पाउडर यूज करें। इससे पूरे चेहरे पर मेकअप एक जैसा लगेगा।

बालों को दें नया लुक
आपके बाल बहुत ज्यादा ड्राई हैं, तो इन पर रोजाना कंडिशनर लगाएं। इस गर्म मौसम में अपने बालों को नया लुक देना चाहती हैं, तो गीले बालों पर सुंदर-सा रिबन बांध लें। आप एक ऊंची पॉनीटेल भी बना सकती हैं। ये स्टाइल गर्मियों में आपको कूल लुक देंगे और गॉर्जियस दिखाने के साथ गर्मी से भी बचाएंगे। अगर आप रोज बाल धोती हैं, तो इन्हें सुखाने के लिए ड्रायर यूज न करें। बालों को नेचरल रूप से सूखने दें। मार्किट में हेयर केयर के कई प्रॉडक्ट्स हैं, जो धूप व कैमिकलयुक्त पानी से आपके बालों को बचाते हैं। इसके अलावा, बाहर निकलने से पहले हैट या स्टोल जरूर कैरी करें।

स्टाइलिश सैंडल
गर्मी में आपके पैर सुंदर लगें, इसके लिए आप नाखूनों को अच्छी तरह फाइल करें। फिर अपने फुटवियर्स से मैच करता नेल पेंट लगाएं। नेल पेंट सूखने के बाद ही फुटवियर्स पहनें। इस मौसम में बैली या जूती पहनने से बचें। इन्हें पहनने से आपको गर्मी ज्यादा लगेगी। इस मौसम में स्ट्रैप्स वाले सैंडल कैरी करें। अगर आप कैजुअल लुक चाहती हैं, तो फ्लिप-फ्लॉप सैंडल पहन सकती हैं। वैसे, ओपन सैंडल पहनने के कई फायदे भी हैं। इससे पैरों को फ्रेश हवा मिलती है, जिससे पैरों में पसीना नहीं आता और बदबू भी नहीं होती। फिर पैरों में गर्मी न लगने से पूरी बॉडी कूल रहती है।

सेहत के लिए जरूरी है नींद



जिंदगी के लिए आहार, निद्रा और मैथुन तीन प्राकृतिक कर्म माने गए हैं। शेक्सपीयर ने नींद को जिंदगी का सबसे महान पोषक माना है। यह तो हम सभी जानते हैं कि शरीर, मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए नींद और आराम निहायत जरूरी है, लेकिन ऐसे कितने भाग्यवान लोग हैं, जिन्हें रातभर चैन की नींद आती है?

प्राचीन समय से ही स्वस्थ रहने के नियमों में सबसे पहला स्थान नींद का रहा है। मानव शरीर की यही खासियत है कि दिनभर की शारीरिक थकान की भरपाई रातभर की नींद में पूरी हो जाती है। जो लोग रात में नहीं सोते उन्हें किसी न किसी तरह दिन में इसकी भरपाई करना जरूरी होता है। हर साल लाखों सड़क दुर्घटनाएँ उनींदे ड्राइवरों के कारण होती हैं।

* कितनी नींद जरूरी

इस पर कई मतभेद हैं। आधुनिक युग से पहले यानी 1920 के आसपास यूके में माना जाता था कि 9 घंटे की नींद तरोताजा रहने के लिए जरूरी है। अब ऐसा नहीं है। अब साढ़े सात घंटे की नींद को ही विशेषज्ञ पर्याप्त मानते हैं। कई विद्वानों का मानना है कि 6 घंटे की नींद वयस्क मानव शरीर के लिए पर्याप्त है। शर्त यही है कि उसे नींद दवाओं की मदद से नहीं, बल्कि प्राकृतिक रूप से आए।

* क्या होती है नींद

नींद के कई चरण होते हैं। मात्र दस मिनट में ही जागृत अवस्था के हल्की नींद की ओर जाने को स्टेज वन श्रेणी की नींद माना गया है। स्टेज टू पहले से गहरी होती है, जो 20 मिनट तक रहती है। नींद के तीसरे और चौथे चरण को गहरी नींद माना गया है। नींद के इसी हिस्से में शरीर और दिमाग को आराम मिलता है और दिनभर की थकान मिटती है। नींद के इस हिस्से में दिमाग से डेल्टा लहरें उत्पन्न होती हैं, इसलिए इसे डेल्टा वेव भी कहा जाता है। इस अवधि में कोई सपने नहीं आते। 90 मिनट की गहरी नींद के बाद रैपिड आई मूवमेंट शुरू होता है। सामान्य नींद में लोग इसके कई बार कई चरणों से होकर गुजरते हैं। दिक्कत तब उत्पन्न होती है, जब यह पैटर्न बदल जाता है।

* नींद का दुरुपयोग

आधुनिक युग में नींद का सबसे अधिक दुरुपयोग किया जाता है। लोग बेडरूम का इस्तेमाल सिर्फ सोने के लिए नहीं, बल्कि दूसरे कामों के लिए भी करने लगे हैं। अक्सर शिकायत करते हैं कि रात को देर से खाते हैं, इसलिए जागना पड़ता है। कई बार पालक यह शिकायत करते हैं कि बच्चे जगते रहते हैं, इसलिए हमें भी जागना पड़ता है। यह प्रकृति की नियामत का दुरुपयोग है।



टीवी सीरियल देखना या देर रात तक फिल्में देखने से नींद का पैटर्न बदल जाता है। दिन भर की थकावट निकल ही नहीं पाती है और दूसरा दिन सामने आ खड़ा होता है। जब रात में नींद ठीक से नहीं होती है तब चिड़चिड़ापन घर करने लगता है। एसीडिटी तथा अन्य शारीरिक समस्याएँ तो साथ आती ही हैं। अक्सर देखा गया है कि जो लोग रात को भरपूर नींद नहीं सोते, उन्हें दिन में नींद के झोंके आते रहते हैं। शरीर किसी न किसी तरह अपने नींद के कोटे की भरपाई कर लेना चाहता है, लेकिन आधुनिक जीवन की जरूरतें उसे पीछे धकेलती रहती है।

* नहीं होती नुकसान की भरपाई

नींद की कमी की भरपाई होना मुश्किल होता है। यदि आप सोमवार से शुक्रवार तक काम में मसरूफ रहते हैं और रातों की नींद के कुछ घंटों की बलि चढ़ा देते हैं तो उसकी भरपाई शनिवार को चंद घंटे अधिक सोने से नहीं होगी। नींद के विषय को गंभीरता से लेना जरूरी है। ताकि मन और शरीर स्वस्थ बना रहे। कार्यकुशलता और क्षमता भी बरकरार रहे। थकान के कारण शरीर पूरी क्षमता से काम नहीं करता है।

दवाओं का दुरुपयोग

नींद की कमी को पूरा करने के लिए नींद लाने वाली दवाओं का सेवन करते हैं, किन्तु इनसे मिलने वाली नींद साधारण नींद ना होकर नशा होती है। इसमें नींद के प्राकृतिक गुण नहीं होते। इससे नींद से मिलने वाले लाभों से वंचित रह जाते हैं।

सावधानी:

* खाना जल्दी खाएँ।

* दूध में शहद डाल कर पीने से नींद अच्छी आती है।

* संतोषी मन बना कर सोएँ तो अच्छी नींद आएगी।

* रात को स्नान करके सोने से भी नींद अच्छी आ सकती है

क्या आप जानते हैं?



इतनी लंबी मोमबत्ती!

आम मोमबत्तियां तो हम सबने देखी हैं, रंग-बिरंगी, छोटी-लंबी-मोटी है न! लेकिन सन् 1897 में स्टॉकहोम प्रदर्शनी में एक ऐसी मोमबत्ती दिखाई गई थी, जिसकी ऊंचाई 80 फुट और व्यास 8.5 फुट था।

पत्थर से बना पाउडर

शरीर पर लगाए जाने वाले सुगंधित टैल्कम पाउडर ‘टैल्क’ नामक पत्थर, जो सबसे मुलायम खनिज है, से बनाया जाता है। इसमें बाद में सुगंधि मिला दी जाती है।

तैरता है लोहा

क्विक सिल्वर कोई चांदी नहीं है, बल्कि यह पारे का नाम है। यह अकेली ऐसी धातु है, जो तरल अवस्था में रहती है। यह इतनी भारी होती है कि इस पर लोहा भी तैरता है।

सबसे भारी और सबसे हल्की धातु

लीथियम धातु सबसे हल्की है, जबकि ऑस्मियम धातु सबसे भारी है। ऑस्मियम की एक 2 फुट लंबी, 2 फुट चौड़ी और 2 फुट मोटी सिल्ली का वÊान एक हाथी के बराबर होता है।

एक असम्भव टाइपराइटर

यद्यपि जापान के लोग औद्योगिक दुनिया में सबसे आगे हैं, लेकिन वे आज तक जापानी भाषा के टाइपराइटर की कुछ कमियां दूर नहीं कर पाए हैं। इसका कारण यह है कि उनकी आम भाषा में 2 हÊार से अधिक अक्षर हैं, जिनके लिए पूर्ण परिष्कृत की-बोर्ड बनाना अत्यधिक कठिन कार्य है।

सबसे महंगा जल

गुरू जल या भारी पानी, जिसका प्रयोग नाभिकीय भट्टियों में किया जाता है, विश्व का सबसे महंगा जल है। एक लीटर गुरू जल का मूल्य लगभग 200 पाउंड होता है।

आसान है तैरना

नदी की तुलना में समुद्र में तैरना अधिक सरल होता है क्योंकि पानी में नमक घुला होने के कारण समुद्री जल का घनत्व अधिक होता है।

साभार - भास्कर. कॉम

आम आदमी में देश का भविष्य देखते थे नेहरू



आधुनिक भारत के शिल्पी कहे जाने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू न केवल एक राष्ट्रवादी और युगदृष्टा थे, बल्कि जनवादी भी थे। उन्होंने स्वतंत्र भारत में समतामूलक विकास की नींव रखी।

नेहरू (14 नवंबर 1889-27 मई 1964) ने स्वतंत्र भारत में संसदीय सरकार और जनवाद को बड़ी सावधानी से पाला-पोसा और इसकी जड़ें मजबूत की। इसे हम पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में भी फलते-फूलते देख रहे हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक कमल मित्र चिनाय ने बताया संविधान निर्माण में आम्बेडकर और अन्य नेताओं के अलावा नेहरू की भी भूमिका थी। उन्होंने अपने नेतृत्व में संविधान को अमल में लाने के लिए अहम योगदान दिया।

चिनाय ने बताया आजादी के बाद के शुरुआती दिनों में सत्ता में कांग्रेस का बहुमत होते हुए भी उन्होंने विभिन्न मुद्दे पर खुलेआम बहस की, जिसे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की पत्रिका में भी देखा जा सकता था।

उन्होंने बताया कि 1950 के बाद से पार्टी पर पूर्ण वर्चस्व प्राप्त होने के बावजूद नेहरू ने आंतरिक जनवाद और खुली बहस को कांग्रेस के अंदर भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने ऐसे संस्थागत ढाँचे के विकास में सहयोग दिया, जो जनवादी मूल्यों पर आधारित थे और जिनमें सत्ता विकेंद्रित थी।

प्रो. चिनाय ने बताया कि नेहरू खुद को समाजवादी कहते थे, लेकिन खुद को समाजवाद की धारा से कुछ अलग रूप में देखते थे।

एक बार जब नेहरू से पूछा गया कि भारत के लिए वे क्या छोड़कर जाएँगे तो उन्होंने कहा था-आशा है चालीस करोड़ ऐसे लोग जो हमारा शासन चलाने के काबिल होंगे।

नेहरू का मानना था कि भारत जैसे विभिन्नता वाले समाज में जनवाद विशेष तौर पर जरूरी है। उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण को करोड़ों जनता तक पहुँचाया और समाजवाद को उनकी चेतना का हिस्सा बना दिया।

नेहरू की सबसे बड़ी जिम्मेदारी और उनकी उपलब्धि भारत की आजादी का सुदृढ़ीकरण और उसकी चौकसी करना था, क्योंकि उस वक्त दुनिया दो महाशक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ के बीच बँटी हुई थी।

प्रो. चिनाय ने बताया नेहरू ने गुटनिरपेक्षता के माध्यम से बहुत सारे देशों को एकत्र कर लिया, वरना आजादी खतरे में पड़ जाती। नेहरू ने सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र को मिलाकर एक राष्ट्रीय क्षेत्र बनाया, जिसे मिश्रित अर्थव्यवस्था के नाम से जाना गया।

उन्होंने बताया कि वे चाहते थे कि सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र को बढ़ने में मदद करे। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र लोगों को नौकरी मुहैया कराने में मदद करे।

नेहरू ने एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के ढाँचे का निमार्ण कार्य आरंभ किया और पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की जड़ों को भारतीय जनता के बीच फैलाया।


साभार - वेबदुनिया. कॉम

मंगलवार, 26 मई 2009

अब भैंस खाएगी हर्बल बिस्किट



छिंदवा़ड़ा। चारा, भूसा और खली-चुनी के साथ अब गाय भैसों को जायकेदार "हर्बल बिस्किट" खाने को मिलेंगे। 16 किस्मों की जड़ी-बूटी से तैयार यह बिस्किट दुधारू पशुओं की दूध क्षमता ब़ढ़ाने में सहयोगी साबित होगा। पातालकोट में निवास करने वाले आदिवासी भुमकाओं के पारंपरिक ज्ञान को मूर्तरूप देकर छिंदवा़ड़ा निवासी डॉ. दीपक आचार्य ने औषधीय विज्ञान की दुनिया में एक प्रभावी सफलता हासिल की है।

जिले के पहुँचविहीन गाँवों में आदिवासी समाज के भुमका अपने पारंपरिक ज्ञान से मनुष्य और जानवरों की लाइलाज बीमारियों का उपचार देशी ज़ड़ी-बूटियों के सहारे करते हैं। ग्रामीण संस्कृति के इस अनमोल ज्ञान को सहेजने के लिए छिंदवा़ड़ा निवासी डॉ. दीपक आचार्य दस साल से पातालकोट क्षेत्र में रहने वाले भुमकाओं के पारंपरिक औषधीय ज्ञान का अध्ययन करते रहे। उन्होंने इस अवधि में लगभग बीस हजार नुस्खे और हर्बल फार्मूले एकत्र किए। अपना जीवन आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान और औषधीय विज्ञान को समर्पित करते हुए डॉ. दीपक ने समस्त नुस्खों और फार्मूलों का पेटेंट भुमकाओं के नाम करा लिया।

यह उत्पाद एक उत्प्रेरक की तरह कार्य करता है, जो जानवर की पाचक क्षमता और दूध बनाने की प्रक्रिया का ब़ढ़ाता है। प्रतिदिन दो बिस्किट रोटी में जानवरों को आसानी से खिलाए जा सकते हैं।
- डॉ. दीपक आचार्य

क्या है बिस्किट में

यह बिस्किट 16 किस्म की ज़ड़ी-बूटियों से तैयार किया गया। इसमें खैर, बबूल, शतावरी, धनिया, अजवायन, सौंफ, गन्ना, महुआ, बिदारी कंद, तिल, सुर्पखा, गुडुची, हर्रा, जीवंती, आँवला और जीरा शामिल है।
- जगदीश पंवार
साभार - वेबदुनिया. कॉम

सोमवार, 25 मई 2009

उपन्यास 'आकाश चम्पा' का अंश





अगली शाम को मचान पर लिखते समय बुधुआ की बोली ने खलल डाली, ‘हमरा ऊपर विसवास नै छै?’
मोतीलाल के कान खड़े हो गए. किससे झगड़ रहा है बुधुआ? मामी से?

‘जब अपने पहरा पर बैठना था तो हमरा काहें ला बैठाई थीं?’

बात धीरे-धीरे समझ में आती है मोतीलाल के, कि अकेले बुधुआ ही पहरा नहीं देता था मामी भी पहरे पर रहती थीं. हद ही हो गई खातिरदारी की.

धीरे-धीरे कुछ और परतें खुलीं फिर कुछ और परतें...वह कौन है जो परछाइयों की तरह पीछे लगा है. घाट से दलान और दलान से मचान तक? मामी! लेकिन भला क्यों? वियोग विदग्धा मामी. सारी उमर निकाल दी मामाजी के पीछे. मामा, जो जाति खारिज, गाँव खारिज होने के कुछ साल बाद तेलंगाना गए तो लौटे ही नहीं.

बुधुआ को जैसे कुकुरमाछी लग गई है. छनक-पटक कर चला गया है. शाम के झुटपुटे में मकई के पौधों के झुरमुट में खड़े हैं मोतीलाल.

‘मामी’

चिहुँक जाती है मामी, ‘पाहुन’

‘हाँ’ स्वर भारी है. कुछ दिन से एक जो बात पूछने का मन करता है.’

दो थकी हुई आँखों ने, दो थकी हुई आँखों में झाँका. मामी की आँखों में अभी भी ‘भादर माह’ की बदली है. अब यह बदली छलक आई मोतीलाल की आँखों में, ‘हमरा ऊपर एतना ममता काहे?’

थोड़ी सी मुस्कराहट, थोड़ी सी उदासी. नाक सिकोड़कर पूछ रही हैं मामी, ‘सारी उमर पार कर देने के बाद आज पूछने आए हो पाहुन? जो ढका है, ढका ही रहने दो.’

चौक गए हैं मोतीलाल. ‘कहीं मामी मुझसे प्यार तो नहीं करतीं?’

‘उसे अब भी नहीं खोलोगी तो कब खोलोगी?’

सुन कर गुन रही हैं मामी.




आसमान में बादल भी हैं, रिमझिम भी. एक छोटी सी बदली ने ढक रखा है अस्तमान सूर्य को. बदली के किनारे रंजित और रोशन हैं. मकई के पत्तों पर ‘पट-पुट’ बज रही हैं बूंदें - दूर भी पास भी. सूरज निकलता आ रहा है बदली से जैसे प्रसव हो रहा है उसका. पूरब इंद्रधनुष खिल रहा है. पर यह मुहुर्त भर का मायाजाल है जो सूरज के डूबने के साथ-साथ तिरोहित हो जाएगा. बूनी थम रही है.

‘हमने कुछ पूछा मामी...?’ मोतीलाल दोबारा याद दिलाते हैं मामी को. ‘पूछ रहे हो?’ मामी की गोरी गर्दन तन गई है. अरे बाप, यह कैसी नज़र से ताक रही हैं मामी. ऐसा रंग कब छलकता है आँखों में. ‘पूछ रहे हो तो सुनो...लेकिन एक बात... इस छिन के बाद ये ई समझ लो कि न हमने कुछ कहा, न तुमने कुछ सुना... जैसे बिजुरी चमक कर बादर में समा जाती है ठीक वैसे ही, यह बात भी... समझे?’

‘जी लेकिन पहले बोलिए तो’

मामी तनिक हँसती हैं, ‘इतने अधीर मत बनो पाहुना. तुम गौरा की माँग के सिंदूर हो. आँचल के अनमोल रतन. तुम्हारा नाम मोतीलाल नहीं, हीरालाल होता तो भी कम था. इतना अच्छा भी नैं होना चाहिए कि देखकर जी ललचाए. सो तुम्हें देखकर लालच लगती. चुरा लेने का मन करता. अब गौरा, मेरी जानो कि गोबर की गौरी! क्या जाने तुम्हारी कदर. तुम्हें रख नहीं पाई. मैं होती तो दिखा देती.’ मामी ने नाक को सिकोड़ कर हल्की सी वो जुंबिश दी कि मोतीलाल निहाल हो उठे.

‘तुम्हें चुरा लेने का मन करता. इसलिए बार-बार तुम्हारे पास जाती रही. बहाने गढ़ती रही पास आने की... लेकिन तुम ठहरे एक ही कठ करेज. मुड़कर ताका भी नहीं कभी.’ मामी को तिरछी चितवन में गहरा उपालंभ है.

‘अरे!’ चकित रह गए मोतीलाल. इस शुष्क, नीरस जीवन की कोख में ऐसा कोई वरदान भी अभी तक छुपा पड़ा है जो घेरे हुए था, मगर जिसे देख न पाए थे. आज मामी के इस रहस्योदघाटन से सारे तहखाने रौशन हो रहे हैं और इनके वैभव पर वे चकित हैं.

नैतिकता की लक्ष्मण रेखा दरक रही है,‘और अगर ताक देता तो शायद हमसे--- या हम दोनों से ही वह पाप हो जाता.’ मामी ने एक गहरी सांस भरी, ‘चलो, अपनी गौरा के दरबार में दोख-पाप का भागी होने से तो बच गए हम.’ मामी तनिक ठमकी फिर बोलीं तो स्वर बदला हुआ था. ‘अब इस सूखती, सड़ती देह में क्या है. यह भी तो नहीं कह सकती कि अँकवार में भर कर चूम लो हमें, बाहों के घेरे में इतना कसो, इतना कि देह की सारी नसें तड़क उठें. तृप्त कर दो हमें कि जवानी से लेकर आज उमर के इस उतार पर आज तक की पियासी आत्मा की सारी पियास मिट जाए... न! इन सबसे बचा लिया बैजनाथ बाबा ने. तुम्हारी तुमरे अंदर रह गई हमारी हमारे अंदर.’

दोनों दो मेघ खंडों की तरह पास आए, फिर ठिठक गई मामी. ‘ना ना छूना मत. मत छूना मुझे.’




ठमक गए मोतीलाल के बढ़ते कदम.

अच्छा हुआ, दोनों ने एक दूसरे को छुआ नहीं. छू देते तो जाने कहां प्रलय आ जाता. दोनों में ही बिजलियाँ भरी थीं.

‘क्या तुम्हें मालूम है कि मामाजी कहाँ हैं? मोतीलाल ने नज़र झुका ली थी. हाँ मामी की सजल आँखे झुकी नहीं थीं.

‘क्या यह भी जानती हो कि...’

हाँ, वे अब कभी भी लौट कर नहीं आएंगे. वर्षों पहले ही तेलंगाना में पुलिस की गोली से...’ आधे वाक्य पर मामी ने उस मर्मभेदी हाहाकार को रोक लिया.

‘तो क्या वे रस से भरी सारी कहानियाँ, वह अभिसार, वह योगी...’

‘सब मनगढंत थे लेकिन वही मेरे संबल थे. क्या करती?’ मामी किसी ढीठ की तरह बोले जा रही थीं. उनकी श्वेत लटें जैसे हर भुट्टे की भुई में फैल गई हों.

मामी बोल रही थीं और शाम की द्वाभा में पके केशों के बीच उनकी माँग की लाली दमक रही थी. जैसे गंगा के इस दीरा (दीयर) के राशि-राशि भूले शुभ्र काँसों के बीच डूबने के पहले सूरज ठिठक गया हो. जैसे देह का सारा रक्त संकेद्रित हो गया हो उस सिंदूर में -आख़िरी बार भभककर जल जाने से पहले का उपक्रम!

संजीव
साभार - बीबीसी हिंदी

वक़्त



यह कैसा वक़्त है
कि किसी को कड़ी बात कहो
तो वह बुरा नहीं मानता.

जैसे घृणा और प्यार के जो नियम हैं
उन्हें कोई नहीं जानता

ख़ूब खिले हुए फूल को देख कर
अचानक ख़ुश हो जाना,
बड़े स्नेही सुह्रदय की हार पर
मन भर लाना,
झुँझलाना,
अभिव्यक्ति के इन सीधे सादे रूपों को भी
सब भूल गए,
कोई नहीं पहचानता

यह कैसी लाचारी है
कि हमने अपनी सहजता ही
एकदम बिसारी है!

इसके बिना जीवन कुछ इतना कठिन है
कि फ़र्क़ जल्दी समझ में नहीं आता
यह दुर्दिन है या सुदिन है.

जो भी हो संघर्षों की बात तो ठीक है
बढ़ने वालों के लिए
यही तो एक लीक है.

फिर भी दुख-सुख से यह कैसी निस्संगिता
कि किसी को कड़ी बात कहो
तो भी वह बुरा नहीं मानता.

कीर्ति चौधरी
साभार - बीबीसी हिंदी

मुझे फिर से लुभाया



मुझे फिर से लुभाया

खुले हुए आसमान के छोटे से टुकड़े ने,
मुझे फिर से लुभाया.
अरे! मेरे इस कातर भूले हुए मन को
मोहने,
कोई और नहीं आया
उसी खुले आसमान के टुकड़े ने मुझे
फिर से लुभाया.

दुख मेरा तब से कितना ही बड़ा हो
वह वज्र सा कठोर,
मेरी राह में अड़ा हो
पर उसको बिसराने का,
सुखी हो जाने का,
साधन तो वैसा ही
छोटा सहज है.

वही चिड़ियों का गाना
कजरारे मेघों का
नभ से ले धरती तक धूम मचाना
पौधों का अकस्मात उग आना
सूरज का पूरब में चढ़ना औ
पच्छिम में ढल जाना
जो प्रतिक्षण सुलभ,
मुझे उसी ने लुभाया

मेरे कातर भूले हुए मन के हित
कोई और नहीं आया

दुख मेरा भले ही कठिन हो
पर सुख भी तो उतना ही सहज है

मुझे कम नहीं दिया है
देने वाले ने
कृतज्ञ हूँ
मुझे उसके विधान पर अचरज है.

कीर्ति चौधरी
साभार - बीबीसी हिंदी

बरसते हैं मेघ झर-झर



बरसते हैं मेघ झर-झर

भीगती है धरा
उड़ती गंध
चाहता मन
छोड़ दूँ निर्बंध
तन को, यहीं भीगे
भीग जाए
देह का हर रंध्र

रंध्रों में समाती स्निग्ध रस की धार
प्राणों में अहर्निश जल रही
ज्वाला बुझाए
भीग जाए
भीगता रह जाए बस उत्ताप!

बरसते हैं मेघ झर-झर
अलक माथे पर
बिछलती बूँद मेरे
मैं नयन को मूँद
बाहों में अमिय रस धार घेरे
आह! हिमशीतल सुहानी शांति
बिखरी है चतुर्दिक
एक जो अभिशप्त
वह उत्तप्त अंतर
दहे ही जाता निरंतर
बरसते हैं मेघ झर-झर

कीर्ति चौधरी
साभार - बीबीसी हिंदी

एक बाल कविता



दो देशों के बीच मचा जब घोर महासंग्राम,
दिन पर दिन बीते, आ गए लाखों सैनिक काम!
कभी किसी का पलड़ा भारी कभी कोई बलशाली,
होते होते एक देश का हुआ ख़ज़ाना ख़ाली!
उसने राजदूत बुलवा कर भेजा एक प्रस्ताव,
क्षमा करें, संधि करलें पर चलें न कोई दाँव!

उत्तर आया इतने हाथी, इतने घोड़े दे दो,
इतनी मुद्राएँ, वस्त्रों के इतने जोड़े दे दो!
एक शर्त पर और है अपनी दस सेवक भिजवादो,
ह्रष्टपुष्ट , बलशाली हों, बस इतना काम करादो!




राजा ने संदेश यह सुन कर दूतों को बुलवाया,
दस बलशाली सेवक लाने जगह-जगह दौड़ाया!

कुछ दिन बीते, सैनिक लौटे, आए मुँह लटकाए,
राजा देख उन्हें चिल्लाया, यह क्या हाय, हाय!
अरे मूर्खो, इतना सा भी काम नहीं कर पाए,
पूरे देश से दस बलशाली लोग नहीं ला पाए!
सैनिक बोले इतना ही कह सकते हैं हे, राजन्,
हम बेबस हैं चाहे ले लें आप हमारा जीवन!

गली-गली और नगर-नगर की ख़ाक है छानी हमने,
नींद को भूले, भूख को त्यागा, पिया न पानी हमने!
भूख-प्यास की मारी जनता, शक्ति कहाँ से पाए,
पूरे देश में दस बलशाली लोग नहीं मिल पाए!
ऐसे लोग ह्रष्टपुष्ट हों, खोट नहीं हो जिनमें,
गाँव-नगर में नहीं, वे हैं तो केवल राजमहल में!

सलमा ज़ैदी
साभार - बीबीसी हिंदी

बादल का छाताः



एक था नन्हा सा बच्चा. नाम तो न जाने उसका क्या था, पर घर में सब उसे बचुआ कहकर बुलाते थे.
एक दिन बचुआ घर के पास वाले सरस्वती पार्क में घूमने गया. वहाँ ढेर सारे बच्चे मिलकर खेल रहे थे. पर बचुआ का कोई दोस्त नहीं था. वह चुपचाप पार्क के एक कोने में बैठकर आकाश में उमड़-घुमड़ रहे बादलों को देख रहा था. बादलों की अजब-गजब शक्लें थीं. कोई हाथी, कोई ऊँट, कोई बहुत बड़े खरगोश तो कोई छुक-छुक रेलगाड़ी की शक्ल जैसा बादल भी था. कुछ हवाई ज़हाज की शक्ल में भूरे-सलेटी बादल भी थे.

एक बादल तो ऐसा था, जैसे कोई बाघ मोटर साइकिल पर शान से बैठा, उसे चला रहा हो. और ये सारे अजीबोगरीब शक्लों वाले जानवर तेज़ी से दौड़ लगा रहे थे. देखकर बचुआ को बड़ा मज़ा आया.

इतने में उसे लगा कि नन्हा सा बादल उसे देखकर हँसा है. यह देखकर बचुआ भी हँस पड़ा.

थोड़ी देर में नन्हा बादल आसमान से उतरा और बचुआ के पास आकर खड़ा हो गया. बोला,‘‘आओ बचुआ, घूमने चलें. झटपट मेरे ऊपर बैठ जाओ.’’

बचुआ बड़ा खुश हुआ. वह बादल के ऊपर बैठा, तो नन्हा बादल झटपट उड़कर आसमान की ओर जाने लगा.

बचुआ को थोड़ा-थोड़ा डर लग रहा था. बादल हँसकर बोला,‘‘आराम से टाँगें फैलाकर बैठ जाओ बचुआ और वह सामने वाली किरणों की डोरी पकड़ लो. फिर डर नहीं लगेगा.’’

बचुआ बैठ गया तो बादल और भी तेज़ी से उड़ने लगा. फिर वह एक जगह रुका. हँसकर बोला,‘‘बचुआ, ठंडी-ठंडी हवा में कही सो तो नहीं गए! देखो, हम जापान देश में आ गए हैं. आओ, नीचे उतरकर ज़रा यहाँ की खूबसूरती देखें.’’

जब वे घूमने निकले, तो थोड़ी-थोड़ी बारिश हो रही थी. नन्हा बादल बोला, ‘‘ठहरो, मैं कुछ करता हूँ.’’ और वह झट एक छाते में बदल गया. अब बादल के छाते के अंदर बचुआ देर तक घूमता रहा. वह ज़रा भी नहीं भीगा था. रास्ते में जहाँ कहीं बचुआ भटकता, छाता बना नन्हा, भूरा बादल उसे रास्ता दिखाता,‘‘बचुआ, ऐसे नहीं, ऐसे चलो.’’

बचुआ थक गया, तो नन्हा बालक एक चुस्त, फुर्तीला जापानी लड़का बन गया. उसने बादलों के रंग की टोपी पहनी हुई थी. उस पर बिजली की तरह चम-चम चमकते मोती लगे थे. वह जापानी लड़का बड़ा चुस्त और खुशदिल था. दौड़कर उसके लिए ढेर सारे फल और मेवे ले आया.

कुछ देर बाद बचुआ फिर बादल पर बैठा और उड़ चला. अब नन्हे बादल ने उसे चीन देश की सैर कराई. वहाँ वह नीली आँखों वाली एक प्यारी सी चीनी लड़की ता शिंकू की शक्ल में उसके आसपास घूमता.

इसी तरह नन्हे बादल ने बचुआ को पूरी दुनिया घुमा दी. इंगलैंड, जर्मनी, फ्राँस, अमरीका समेत उसने दुनिया के अजब-अजब तरह के लोग देखे. सुंदर नदियाँ, पहाड़ और समुद्र देखे. झीलें देखीं, जंगल और रेगिस्तान देखे.

देखकर बचुआ खूब खुश हुआ. जिन चीज़ों को पहले उसने खाली भूगोल की किताब में पढ़ा था, आज उन्हें ख़ुद अपनी आँखों से देख पा रहा था.

लौटा तो बचुआ को घर की बुरी तरह याद आ रही थी. अम्मा और बाबू जी याद आ रहे थे. सोच रहा था ‘वाह! उन्हें दुनिया के अजब-गजब रंग-रूपों के बारे में बताऊँगा, तो वे कितने खुश होंगे.’

उसने नन्हे बादल से कहा, तो वह हँसकर बोला,‘‘हाँ-हाँ बिलकुल...बिलकुल खुश होंगे. बताना उन्हें सारी बातें.’’

बचुआ नीचे उतरा, तो बादल एक सुंदर रिक्शा बन गया. सफेद रंग का चम-चम चमकता रिक्शा. उस पर एक सुंदर, सुनहरा छाता भी तन गया. बचुआ बैठा, तो वह रिक्शा ख़ुद-ब-ख़ुद चल पड़ा.

बचुआ खुश-अहह...! वाह रे राम, दुनिया कितनी खूबसूरत है!

उधर सड़क पर लोग यह देख रहे थे. हैरान होकर सोच रहे थे,‘अरे, यह क्या?.. यह तो अजब तमाशा है.’

तभी बचुआ का घर आ गया. बचुआ झट रिक्शे से उतरा और दौड़ते हुए अपने घर जा पहुँचा.

वह झट अपनी अम्मा से मिला, बाबू से मिला. सबको अपनी अनोखी सैर के बारे में बताया.

सब खुश थे. वाह रे वाह, अपने बचुआ ने तो बड़ा कमाल किया!

बचुआ की अम्मा और बाबू जी ने सोचा कि बादल को धन्यवाद तो देना चाहिए. पर उन्होंने बाहर जाकर देखा, तो बादल गायब. वह ऊपर आसमान में जाकर बड़े प्यार से हँसता हुआ हाथ हिला रहा था. मानो विदा ले रहा हो.

बाहर अब भी ढेरों लोग खड़े थे. सब पूछ रहे थे बचुआ की अम्मा और बाबू से कि बचुआ कौन से रिक्शे में बैठकर आया है? चाँदी जैसा चम-चम करता रिक्शा था. उस पर सुनहरा छत्र तना था. उसे तो कोई चला भी नहीं रहा था. अपने आप हवा में चलता जा रहा था. और फिर वह रिक्शा हमारे देखते-देखते हवा में उड़कर जाने कहाँ चला गया!... कैसे हुआ यह अजूबा?

जब बचुआ ने बताया कि वह रिक्शा तो एक नन्हा खुशदिल बादल था और वही उसे सारी दुनिया में घुमाकर लाया है, तो लोग बड़े हैरान हुए. सब बचुआ से उसकी अनोखी यात्रा के बारे में पूछने लगे.

बचुआ ने उन्हें सब कुछ बताया कि वह किस तरह उस नन्हे सैलानी बादल पर बैठकर दुनिया के अजब-अनोखे पर्वत, नदियाँ, झरने, झीलें और समंदर देखकर आया है, तो लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा.

अब बचुआ पार्क में जाता, तो अकेला न रहता. सब बच्चे बार-बार उसकी अजब-अनोखी कहानी सुनते. उसे अपने साथ खेल खिलाते और बातें करते. बचुआ ने पक्का वादा किया है कि अब के बादल आया, तो वह उन सबको अपने साथ बादल पर बैठ, सारी दुनिया की सैर कराने ले जाएगा.

प्रकाश मनु
545 सेक्टर-29
फरीदाबाद,हरियाणा
फोन-0129-2500030
साभार - बीबीसी हिंदी

पुश्तैनी तलवार



जब तेनालीराम राज दरबार में आना शुरू कर चुके थे उस समय का यह किस्सा है।

सम्राट कृष्णदेव राय के वंशज पुश्तों से विजय नगर पर राज्य करते आए थे। प्रत्येक राजवंश की महत्वपूर्ण वस्तुओं की हिफाजत के लिए सम्राट ने एक विशाल संग्रहालय की स्थापना की। उसकी देख-रेख के लिए अनेक होशियार तथा काबिल कर्मचारियों का निरीक्षण कर रहे थे। एकाएक अपने पूर्वज नरेश नायक की तलवार देखकर रुक गए। सम्राट कृष्णदेव राय ने मंत्री से पूछा- तुम्हें इस तलवार में क्या खासियत दिखाई दे रही है? मंत्री बोला- अन्नदाता, यह तलवार नहीं, आपके पूर्वजों की बहादुरी की कहानी है। सेनापति की तरफ सम्राट ने देखा तो वह बोला- महाराज, यह तलवार नहीं, वह अनमोल हीरा है जिसने दुश्मनों के कठोर से कठोर हाड़ मांस को भी गाजर मूली की तरह काट डाला।

सम्राट तलवार की तारीफ सुन, फूले न समा रहे थे। पुरोहित व दूसरे सभी दरबारियों ने तलवार की प्रशंसा में जमीन आसमान एक करने शुरू कर दिए। अचानक मंत्री ने देखा कि तेनालीराम खामोश खड़ा है। सम्राट को सुनाते हुए उसने तेनालीराम से कहा- तुम क्यों खामोश हो तेनालीराम? तुम भी बताओ, तुमने तलवार में क्या देखा? पानी। पानी, तेनालीराम का जवाब सुनकर सभी दरबारी एक साथ चौंककर बोले।

तब मंत्री ने सम्राट कृष्णदेव राय की तरफ देखते हुए तेनालीराम से कहा- इस महान तलवार का अपमान मत को तेनालीराम, जो तलवार संसार की धन-संपत्ति से अधिक मूल्यवान है उसमें तुम्हें पानी दिखाई दे रहा है। सम्राट कृष्णदेव राय भी अपनी इस पुश्तैनी तलवार की तौहीन को अधिक देर तक न पचा सके। उन्होंने फुफकारते हुए तेनालीराम की तरफ देखा और बोले- तेनालीराम तुम आवश्यकता से अधिक ढीठ होते जा रहे हो। या तो एक सप्ताह के अंदर साबित करो कि तुमने जो तलवार में देखा है वह सही है वरना मैं तुम्हें प्राणदंड दिए बिना न रहूंगा।

दरबारियों को अहसास हुआ कि इस बार तेनालीराम बच न सकेगा। वे मुस्कुरा कर एक-दूसरे को देखने लगे। आदेश देकर सम्राट जाने लगे तो तेनालीराम ने हाथ जोड़कर एक सप्ताह के लिए वहीं रहने की अनुमति देने को कहा। कुछ सोचकर सम्राट ने इजाजत दे दी।

आठवें दिन दरबार खचाखच भरा था। सभी को उम्मीद थी कि तेनालीराम उस पुश्तैनी तलवार में पानी देखने की बात सिद्ध नहीं कर पाएगा और उसे प्राणदंड मिलेगा। दम साधे सभी तेनालीराम के आने का इंतजार कर रहे थे। दरबार शुरू हुए आधा घंटा भी नहीं बीता था कि तेनालीराम मुस्कुराता आता दिखाई दिया। उसके पीछे-पीछे संग्रहालय के तीन कर्मचारी अपने-अपने सिर पर पुस्तकों के गट्ठर उठाकर ला रहे थे। सम्राट सहित सभी दरबारी अचंभे में थे। तेनालीराम ने उन गट्ठरों को खोलकर महाराज से कहा- महाराज, मेरी बात का सबूत ये प्राचीन पुस्तकें हैं जो मैं आपके संग्रहालय से लाया हूं।

आश्चर्य से सम्राट ने कुछ कहना चाहा तो तेनालीराम बोला- महाराज, इन पुस्तकों में आपके उन पूर्वजों की शौर्य गाथाएं हैं जिन्होंने इस प्रतापी तलवार का इस्तेमाल दुश्मनों के खिलाफ किया। इन सभी ने लिखा है कि उस तलवार ने विजय नगर के दुश्मनों को बार-बार पानी पिलाया है।

फिर दूसरे गट्ठर की ओर संकेत करके तेनालीराम ने कहा- इन पुस्तकों में लिखा है कि पानीदार तलवार के आगे दुश्मनों के सारे हवाई किले धराशायी हो गए। वह तीसरे गट्ठर की तरफ इशारा करके कुछ कहना ही चाहता था कि सम्राट कृष्णदेव राय ने स्वयं उठकर उसे गले से लगा लिया। बोले- बस, बस तेनालीराम, हम समझ गए कि जिस तलवार में पानी न हो, वह हीरे की हो या चांदी की, बेकार है। तुमने उस पुश्तैनी तलवार में अवश्य ही पानी देखा होगा। दरबारियों के सिर झुक गए। राजा ने तेनालीराम को पुरस्कार से सम्मानित किया।
साभार - दैनिक भास्कर

सोने की गेंद



हर रविवार की सुबह गांव के कुछ लोग चौपाल पर जमा होकर यहां-वहां की हांकने में जुटे थे। तभी गांव का एक धनी दुकानदार भी वहां आ पहुंचा और शेखी बघारते हुए बोला, ‘तुम सब अपनी बातें छोड़ो, मेरी सुनो। मैं तो हरीश सेठ के बंगले के अंदर जाकर सब कमरे भी देख चुका हूं।’

लोगों को उसकी बात पर सहसा विश्वास न हुआ क्योंकि हरीश सेठ उस गांव का ही नहीं, पूरे नगर में सबसे धनवान होने के साथ-साथ लालची, अक्खड़ और महाकंजूस भी था।वहां बैठे बड़बोले मोहन से रहा न गया। वह बोला, ‘तुमने तो हरीश सेठ का बंगला देखा भर है। मैं चाहूं, तो उसके साथ बैठकर खाना भी खा सकता हूं।‘ ‘ये मुंह और मसूर की दाल। तुझ जैसे फटीचर का यह ख्वाब कभी पूरा नहीं हो सकता।’ दुकानदार ने मोहन का मÊाक उड़ाते हुए कहा।

‘तो लगी शर्त! अगर मैंने हरीश सेठ के साथ बैठकर खाना खा लिया, तो तुम अपनी बग्घी का घोड़ा और पालतू गाय मुझे सौंप दोगे और अगर मैं वैसा न कर पाया, तो बिना वेतन के दो साल तक मैं तुम्हारे यहां काम करूंगा।’

‘मुझे मंजूर है।’ दुकानदार ने वहां मौजूद लोगों के सामने मोहन से हाथ मिलाते हुए कहा।

‘अब देखो मेरा कमाल!’ कहने के साथ ही मोहन मन ही मन योजना बनाकर हरीश सेठ के बंगले पर जा पहुंचा और वहां तैनात दरबान से बोला, ‘सेठजी से जाकर कहो कि मुझे उनसे कुछ Êारूरी बात पूछनी है।’सेठ ने जिज्ञासावश मोहन को अपने पास बुलवाकर पूछा, ‘क्या पूछना चाहते हो मुझसे?’

‘सेठजी, कृपया आप मुझे यह बताएं कि लगभग आधा किलो वजनी सोने की गेंद का मूल्य कितना होगा?’ ‘लगता है इसके हाथ कहीं से सोने की गेंद लग गई है। इससे पहले कि यह गंवार उसे कहीं ओर बेचे, मुझे ही वह हासिल कर लेनी चाहिए।’ सोचकर हरीश सेठ ने कहा, ‘बता दूंगा, इतनी भी क्या जल्दी है। पहले कुछ खा-पी लेते हैं।’ उसने अपने तथा मोहन के लिए बढ़िया-बढ़िया पकवान बनवाए। फिर दोनों ने डटकर भोजन किया। उसके बाद हरीश सेठ ने मोहन की खातिरदारी करते हुए उसे चांदी का वरक चढ़ी पान की गिलौरी भी भेंट की।

‘अब तुम दौड़कर घर जाओ और सोने की गेंद मेरे पास ले आओ, पर उसे बड़ी सावधानी के साथ और ढंककर लाना।’

‘लेकिन मेरे पास तो कोई गेंद नहीं है।’

‘मÊाक मत करो। मैं तुम्हें उस गेंद के बदले में दो बोरी आटा, दो बोरी दाल और चांदी के कुछ सिक्के भी दूंगा।’

‘मैं सच कह रहा हूं कि मेरे पास ऐसी कोई गेंद नहीं है। मैं तो सोच रहा था कि अगर मुझे कहीं से वैसी कोई सोने की गेंद मिल जाए, तो उसकी कीमत कितनी होगी, बस वही पूछने मैं आपके पास आया था।’‘मूर्ख..बदतमीज..जाहिल..चल फूट यहां से। जाने कहां-कहां से उठकर चले आते हैं।’

हरीश सेठ का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था। मोहन चुपचाप बंगले से बाहर आ गया और जोर जोर से हंसने लगा। जहां वह एक अमीर किंतु लालची और कंजूस सेठ के साथ बढ़िया भोजन करने में सफल हुआ, वहीं शर्त जीतकर एक बढ़िया घोड़ा तथा गाय भी हासिल कर चुका था।

शनिवार, 23 मई 2009

गोटू व मोटू


गोटू और मोटू जोकर डंबो सर्कस में काम करते थे। वे दोनों अच्छे मित्र थे। गोटू बहुत लंबा और पतला था, जबकि मोटू छोटा व मोटा था।

एक दिन गोटू और मोटू सर्कस में करतब दिखा रहे थे। गोटू हवा में साबुन के बुलबुलों को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। यह देख कर बच्चे हँसते हुए तालियाँ बजाने लगे।

उसी समय अचानक गोटू ने थोड़ासा साबुन वाला पानी जमीन पर उड़ेल दिया। फिर जैसे ही मोटू बुलबुले को पकड़ने के लिए ऊपर की ओर कूदा, फिसल कर नीचे गिर गया।

मोटू दर्द के कारण जोरजोर से चिल्लाने लगा, ''हाय, मैं मर गया।''

गोटू और सर्कस देखने वाले बच्चों ने सोचा कि यह उसका दूसरा करतब है। इसलिए वे जोर जोर से हंसने लगे।

लेकिन मोटू को बहुत चोट आई थी। वह इस कारण भी दुखी था कि गोटू उस पर हँस रहा है। तभी उसने गोटू को सबक सिखाने का निश्चय किया।

'शो' के बाद उस रात जैसे ही सब लोग रात के खाने के लिए इकठ्ठे हुए, मोटू के दिमाग में एक विचार आया। उसने गोटू की प्लेट से २ पूड़ियाँ चुरा कर अपनी जेब में रख लीं। लेकिन गोटू को इस बात का पता न चला।

अगले दिन जब गोटू चमकीले लाल कपड़ों में शो के लिए तैयार हो रहा था, तभी मोटू ने उस की कमीज के पीछे पूड़ियों को लटका दिया। फिर उसने गोटू से कहा, ''जल्दी करो, शो के लिए तुम्हें देर हो रही है।''

गोटू जल्दी से अपनी कैप पहन कर तंबू से बाहर आया तो ३-४ कुत्तों ने उसके पीछे चलना शुरू कर दिया। गोटू हड़बड़ाता हुआ शो के लिए चल दिया। साथ ही कुत्ते भी भूंकते हुए उसके पीछे-पीछे चलने लगे। मोटू कोने में खड़ा हँस रहा था। तभी सर्कस मैनेजर ने उन दोनों को आवाज दी, ''गोटू मोटू तुम जल्दी से रिंग में जाओ।''

गोटू ने सर्कस कर्मचार्रियों की सहायता से कुत्तों से पीछा छुड़ाया और रिंग में पहुँचा। जब बच्चों ने गोटू की कमीज पर पूड़ियाँ लटकी देखीं तो उन्होंने सोचा कि यह भी उस के करतब का ही अगला भाग है। फिर एक पालतू कुत्ते ने पूड़ियों को सूंघ कर गुर्राना शुरू कर दिया।

लेकिन गोटू ने अपना खेल जारी रखा। उसने हवा में बुलबुले उड़ाने का करतब शुरू किया। मोटू बुलबुलों को पकड़ने के लिए कूदने लगा। तभी एकलंबा सा बुलबुला गोटू की कैप पर जा कर बैठ गया।

अब मोटू उछलने के बाद भी उसे नहीं पकड़ सका, क्योंकि उसका कद छोटा था। वह बुलबुले को पकड़ने के लिए नई योजना बनाने लगा। बच्चे उस दृश्य को देख कर बहुत खुश हो रहे थे। बाद में मोटू एक सीढ़ी लेकर आया और उसे गोटू के सामने लगा दिया। जब वह सीढ़ी पर चढ़ रहा था, तब एक दूसरा पालतू कुत्ता भीड़ में से बाहर आया और गोटू की कमीज पर लगी पूर्ड़ियों पर झपटा। उसने गोटू को भी काट लिया।

गोटू दर्द के मारे अपना संतुलन खो बैठा। गोटू, मोटू और कुत्ता सभी धड़ाम से गिर पड़े। अब दोनों जोकर दर्द के मारे चिल्ला रहे थे, जबकि बच्चे यह देख कर हँसने लगे।

फिर गोटू और मोटू जल्दी से रिंग से बाहर आए। दोनों को अस्पताल ले जाया गया।

मोटू ने गोटू से माफी मांगी और कहा, ''मैं नहीं जानता था कि मेरा यह मजाक हमें इस परेशानी में डाल देगा।'' अब मोटू और गोटू ने निश्चय किया कि वे फिर ऐसी शरारत कभी नहीं करेंगे।

तभी पीछे से आवाज आई, ''नहीं नहीं, ऐसा मत कहो। आज तुम दोनों की वजह से सर्कस का यह करतब बहुत कामयाब रहा है,'' सर्कस का मालिक मोटू और गोटू के लिए गुलदस्ता लिए खड़ा था।

गोटू व मोटू की आँखें खुशी के कारण चमकने लगीं।

गुरुवार, 21 मई 2009

सम्पादक का पत्र





मेरे नन्हे मुन्हे दोस्तों और मेरे बड़े पाठकगण आज से मैं इस ब्लॉग की सुरुवात कर रहा हूँ | यह ब्लॉग आपके परिचित ब्लॉग संघ साधना का ही एक अंग है | अंतर सिर्फ यही है की उस ब्लॉग में नन्हे मुन्ने पाठको को बड़े बड़े विषय समझ में नहीं आते है कुछ मित्रो ने मुझे कहा की संपादक महोदय एक ऐसा ब्लॉग होना चाहिए जिसमे छोटे बच्चो के लिए ऐसे विषय हो जिनसे उनके
ज्ञान में वृद्धि हो |
संपादक
चन्दन कुमार
लाल बिल्डिंग कालोनी
जमशेदपुर
झारखण्ड
 

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