
जब तेनालीराम राज दरबार में आना शुरू कर चुके थे उस समय का यह किस्सा है।
सम्राट कृष्णदेव राय के वंशज पुश्तों से विजय नगर पर राज्य करते आए थे। प्रत्येक राजवंश की महत्वपूर्ण वस्तुओं की हिफाजत के लिए सम्राट ने एक विशाल संग्रहालय की स्थापना की। उसकी देख-रेख के लिए अनेक होशियार तथा काबिल कर्मचारियों का निरीक्षण कर रहे थे। एकाएक अपने पूर्वज नरेश नायक की तलवार देखकर रुक गए। सम्राट कृष्णदेव राय ने मंत्री से पूछा- तुम्हें इस तलवार में क्या खासियत दिखाई दे रही है? मंत्री बोला- अन्नदाता, यह तलवार नहीं, आपके पूर्वजों की बहादुरी की कहानी है। सेनापति की तरफ सम्राट ने देखा तो वह बोला- महाराज, यह तलवार नहीं, वह अनमोल हीरा है जिसने दुश्मनों के कठोर से कठोर हाड़ मांस को भी गाजर मूली की तरह काट डाला।
सम्राट तलवार की तारीफ सुन, फूले न समा रहे थे। पुरोहित व दूसरे सभी दरबारियों ने तलवार की प्रशंसा में जमीन आसमान एक करने शुरू कर दिए। अचानक मंत्री ने देखा कि तेनालीराम खामोश खड़ा है। सम्राट को सुनाते हुए उसने तेनालीराम से कहा- तुम क्यों खामोश हो तेनालीराम? तुम भी बताओ, तुमने तलवार में क्या देखा? पानी। पानी, तेनालीराम का जवाब सुनकर सभी दरबारी एक साथ चौंककर बोले।
तब मंत्री ने सम्राट कृष्णदेव राय की तरफ देखते हुए तेनालीराम से कहा- इस महान तलवार का अपमान मत को तेनालीराम, जो तलवार संसार की धन-संपत्ति से अधिक मूल्यवान है उसमें तुम्हें पानी दिखाई दे रहा है। सम्राट कृष्णदेव राय भी अपनी इस पुश्तैनी तलवार की तौहीन को अधिक देर तक न पचा सके। उन्होंने फुफकारते हुए तेनालीराम की तरफ देखा और बोले- तेनालीराम तुम आवश्यकता से अधिक ढीठ होते जा रहे हो। या तो एक सप्ताह के अंदर साबित करो कि तुमने जो तलवार में देखा है वह सही है वरना मैं तुम्हें प्राणदंड दिए बिना न रहूंगा।
दरबारियों को अहसास हुआ कि इस बार तेनालीराम बच न सकेगा। वे मुस्कुरा कर एक-दूसरे को देखने लगे। आदेश देकर सम्राट जाने लगे तो तेनालीराम ने हाथ जोड़कर एक सप्ताह के लिए वहीं रहने की अनुमति देने को कहा। कुछ सोचकर सम्राट ने इजाजत दे दी।
आठवें दिन दरबार खचाखच भरा था। सभी को उम्मीद थी कि तेनालीराम उस पुश्तैनी तलवार में पानी देखने की बात सिद्ध नहीं कर पाएगा और उसे प्राणदंड मिलेगा। दम साधे सभी तेनालीराम के आने का इंतजार कर रहे थे। दरबार शुरू हुए आधा घंटा भी नहीं बीता था कि तेनालीराम मुस्कुराता आता दिखाई दिया। उसके पीछे-पीछे संग्रहालय के तीन कर्मचारी अपने-अपने सिर पर पुस्तकों के गट्ठर उठाकर ला रहे थे। सम्राट सहित सभी दरबारी अचंभे में थे। तेनालीराम ने उन गट्ठरों को खोलकर महाराज से कहा- महाराज, मेरी बात का सबूत ये प्राचीन पुस्तकें हैं जो मैं आपके संग्रहालय से लाया हूं।
आश्चर्य से सम्राट ने कुछ कहना चाहा तो तेनालीराम बोला- महाराज, इन पुस्तकों में आपके उन पूर्वजों की शौर्य गाथाएं हैं जिन्होंने इस प्रतापी तलवार का इस्तेमाल दुश्मनों के खिलाफ किया। इन सभी ने लिखा है कि उस तलवार ने विजय नगर के दुश्मनों को बार-बार पानी पिलाया है।
फिर दूसरे गट्ठर की ओर संकेत करके तेनालीराम ने कहा- इन पुस्तकों में लिखा है कि पानीदार तलवार के आगे दुश्मनों के सारे हवाई किले धराशायी हो गए। वह तीसरे गट्ठर की तरफ इशारा करके कुछ कहना ही चाहता था कि सम्राट कृष्णदेव राय ने स्वयं उठकर उसे गले से लगा लिया। बोले- बस, बस तेनालीराम, हम समझ गए कि जिस तलवार में पानी न हो, वह हीरे की हो या चांदी की, बेकार है। तुमने उस पुश्तैनी तलवार में अवश्य ही पानी देखा होगा। दरबारियों के सिर झुक गए। राजा ने तेनालीराम को पुरस्कार से सम्मानित किया।
साभार - दैनिक भास्कर
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें