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सोमवार, 25 मई 2009

एक बाल कविता



दो देशों के बीच मचा जब घोर महासंग्राम,
दिन पर दिन बीते, आ गए लाखों सैनिक काम!
कभी किसी का पलड़ा भारी कभी कोई बलशाली,
होते होते एक देश का हुआ ख़ज़ाना ख़ाली!
उसने राजदूत बुलवा कर भेजा एक प्रस्ताव,
क्षमा करें, संधि करलें पर चलें न कोई दाँव!

उत्तर आया इतने हाथी, इतने घोड़े दे दो,
इतनी मुद्राएँ, वस्त्रों के इतने जोड़े दे दो!
एक शर्त पर और है अपनी दस सेवक भिजवादो,
ह्रष्टपुष्ट , बलशाली हों, बस इतना काम करादो!




राजा ने संदेश यह सुन कर दूतों को बुलवाया,
दस बलशाली सेवक लाने जगह-जगह दौड़ाया!

कुछ दिन बीते, सैनिक लौटे, आए मुँह लटकाए,
राजा देख उन्हें चिल्लाया, यह क्या हाय, हाय!
अरे मूर्खो, इतना सा भी काम नहीं कर पाए,
पूरे देश से दस बलशाली लोग नहीं ला पाए!
सैनिक बोले इतना ही कह सकते हैं हे, राजन्,
हम बेबस हैं चाहे ले लें आप हमारा जीवन!

गली-गली और नगर-नगर की ख़ाक है छानी हमने,
नींद को भूले, भूख को त्यागा, पिया न पानी हमने!
भूख-प्यास की मारी जनता, शक्ति कहाँ से पाए,
पूरे देश में दस बलशाली लोग नहीं मिल पाए!
ऐसे लोग ह्रष्टपुष्ट हों, खोट नहीं हो जिनमें,
गाँव-नगर में नहीं, वे हैं तो केवल राजमहल में!

सलमा ज़ैदी
साभार - बीबीसी हिंदी

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