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रविवार, 31 मई 2009

भली सीख न मानने का बुरा फल



किसी स्थान पर उद्धत नाम का एक गधा रहता था। दिनभर वह धोबी के साथ रहकर उसके कपड़े ढोता था। रात को धोबी उसको छोड़ देता था और वह मनमाना इधर-उधर घूमा करता था। प्रातःकाल होते ही वह स्वयं ही धोबी के घर पर आ उपस्थित होता जिससे कि धोबी उस पर विश्वास करके उसको कभी बांधता नहीं था।

इस प्रकार किसी दिन रात को खेत में चलते हुए उसकी मित्रता एक श्रृंगाल (सियार) से हो गई। गधा खेत की बाड़ तोड़ने में निपुण था। इस प्रकार बाड़ तोड़कर वह खेत में घुसकर श्रृंगाल के साथ ककड़ियां खाया करता था। प्रातःकाल दोनों अपने-अपने स्थान पर चले जाया करते थे।

एक दिन उस गधे ने श्रृंगाल ने कहा, “भानजे! देखो, आज की रात कितनी सुहानी है। चन्द्रमा चमक रहा है, बयार बह रही है, भीनी-भीनी सुगन्ध आ रही है। ऐसे में मेरा मन गाना गाने को कर रहा है। बताओ कौन से राग का गाना गाऊं?”

श्रृंगाल बोला, “मामा! क्यों व्यर्थ में आपत्ति को निमंत्रण दे रहे हो? हम लोग यहां चोरी करने आए हैं। चोरों और व्यभिचारियों को चाहिए कि वे स्वयं को छिपाकर रखें। कहते हैं कि जिस व्यक्ति को खांसी आती हो उसको दूसरी स्त्री के पास नहीं जाना चाहिए और जो व्यक्ति रोगी हो उसको अपनी जीभ पर नियंत्रण रखना चाहिए।”

“और मामा! आपका स्वर भी तो मधुर नहीं है। उसे सुनकर खेत के रखवाले जाग जाएंगे। तब फिर वे या तो आपको मार डालेंगे या फिर बांध देंगे। इसलिए चुपचाप अमृत के समान इन ककड़ियों को खाओ, गाने-वाने के फेर में मत पड़ो।”

गधा कहने लगा, “तुम जंगली हो न इसलिए संगीत के विषय में तुम्हें न कोई ज्ञान है और न ही तुमको उसमें मजा आता है।” “मामा! शायद तुम ठीक कहते हो। किन्तु तुम्हें ही गाना कहां आता है, तुम तो रेंकते हो।”

“क्या मूर्खता की बातें करता है! तू कहता है मुझे गाना नहीं आता और मैं कहता हूं कि मुझे सारा संगीत-शास्त्र कंठस्थ है। स्वर क्या होते हैं, उनके कितने भेद होते हैं, उन भेदों को क्या कहते हैं आदि-आदि। फिर भी तुम कहते हो कि मुझे गाना नहीं आता?” श्रृंगाल समझ गया कि गधे को गाने की सूझी है।

अतः उसने कहा, “मामा! यदि यही बात है तो मैं इस बाड़े के बाहर बैठकर खेत की रखवाली करता हूं, तुम निश्चिंत होकर अपना गाना गाओ।” श्रृंगाल खेत के बाहर होकर सुरक्षित स्थान पर बैठ गया। उसके जाते ही गर्दभ ने रेंकना आरम्भ किया। जल्द ही उसकी आवाज को सुनकर खेत का रखवाला क्रोध से पागल होकर दौड़ा हुआ आया। खेत में जब उसने गधे को देखा तो उसको इतना मारा, इतना मारा कि वह वहीं पर चित हो गया।

रखवाले को इतने ही में सन्तोष नहीं हुआ। उसने उस गधे के गले में एक भारी ऊखल बांध दी और स्वयं निश्चंत होकर सो गया। रखवाले के जाते ही गधा उठ गया। कहते हैं कि कुत्ते, घोड़े और खासकर गधे को मार की पीड़ा कुछ ही क्षणों तक रहती है। गधा उस ऊखल के साथ खेत के बाहर जाने लगा।

उस समय श्रृगाल बोला, “मामा! मैंने कितना मना किया था किन्तु तुम माने नहीं। अब देखो कितना सुन्दर मणि उपहार रूप में तुम्हारे गले में लटका हुआ मिल गया है।”

किसी ने ठीक ही कहा है जो स्वयं बुद्धिहीन हो और मित्र का कहना भी न माने वह व्यक्ति मुसीबत में पड़ जाता है।”

(साभारः पंचतंत्र की कहानियां
किसी स्थान पर उद्धत नाम का एक गधा रहता था। दिनभर वह धोबी के साथ रहकर उसके कपड़े ढोता था। रात को धोबी उसको छोड़ देता था और वह मनमाना इधर-उधर घूमा करता था। प्रातःकाल होते ही वह स्वयं ही धोबी के घर पर आ उपस्थित होता जिससे कि धोबी उस पर विश्वास करके उसको कभी बांधता नहीं था।

इस प्रकार किसी दिन रात को खेत में चलते हुए उसकी मित्रता एक श्रृंगाल (सियार) से हो गई। गधा खेत की बाड़ तोड़ने में निपुण था। इस प्रकार बाड़ तोड़कर वह खेत में घुसकर श्रृंगाल के साथ ककड़ियां खाया करता था। प्रातःकाल दोनों अपने-अपने स्थान पर चले जाया करते थे।

एक दिन उस गधे ने श्रृंगाल ने कहा, “भानजे! देखो, आज की रात कितनी सुहानी है। चन्द्रमा चमक रहा है, बयार बह रही है, भीनी-भीनी सुगन्ध आ रही है। ऐसे में मेरा मन गाना गाने को कर रहा है। बताओ कौन से राग का गाना गाऊं?”

श्रृंगाल बोला, “मामा! क्यों व्यर्थ में आपत्ति को निमंत्रण दे रहे हो? हम लोग यहां चोरी करने आए हैं। चोरों और व्यभिचारियों को चाहिए कि वे स्वयं को छिपाकर रखें। कहते हैं कि जिस व्यक्ति को खांसी आती हो उसको दूसरी स्त्री के पास नहीं जाना चाहिए और जो व्यक्ति रोगी हो उसको अपनी जीभ पर नियंत्रण रखना चाहिए।”

“और मामा! आपका स्वर भी तो मधुर नहीं है। उसे सुनकर खेत के रखवाले जाग जाएंगे। तब फिर वे या तो आपको मार डालेंगे या फिर बांध देंगे। इसलिए चुपचाप अमृत के समान इन ककड़ियों को खाओ, गाने-वाने के फेर में मत पड़ो।”

गधा कहने लगा, “तुम जंगली हो न इसलिए संगीत के विषय में तुम्हें न कोई ज्ञान है और न ही तुमको उसमें मजा आता है।” “मामा! शायद तुम ठीक कहते हो। किन्तु तुम्हें ही गाना कहां आता है, तुम तो रेंकते हो।”

“क्या मूर्खता की बातें करता है! तू कहता है मुझे गाना नहीं आता और मैं कहता हूं कि मुझे सारा संगीत-शास्त्र कंठस्थ है। स्वर क्या होते हैं, उनके कितने भेद होते हैं, उन भेदों को क्या कहते हैं आदि-आदि। फिर भी तुम कहते हो कि मुझे गाना नहीं आता?” श्रृंगाल समझ गया कि गधे को गाने की सूझी है।

अतः उसने कहा, “मामा! यदि यही बात है तो मैं इस बाड़े के बाहर बैठकर खेत की रखवाली करता हूं, तुम निश्चिंत होकर अपना गाना गाओ।” श्रृंगाल खेत के बाहर होकर सुरक्षित स्थान पर बैठ गया। उसके जाते ही गर्दभ ने रेंकना आरम्भ किया। जल्द ही उसकी आवाज को सुनकर खेत का रखवाला क्रोध से पागल होकर दौड़ा हुआ आया। खेत में जब उसने गधे को देखा तो उसको इतना मारा, इतना मारा कि वह वहीं पर चित हो गया।

रखवाले को इतने ही में सन्तोष नहीं हुआ। उसने उस गधे के गले में एक भारी ऊखल बांध दी और स्वयं निश्चंत होकर सो गया। रखवाले के जाते ही गधा उठ गया। कहते हैं कि कुत्ते, घोड़े और खासकर गधे को मार की पीड़ा कुछ ही क्षणों तक रहती है। गधा उस ऊखल के साथ खेत के बाहर जाने लगा।

उस समय श्रृगाल बोला, “मामा! मैंने कितना मना किया था किन्तु तुम माने नहीं। अब देखो कितना सुन्दर मणि उपहार रूप में तुम्हारे गले में लटका हुआ मिल गया है।”

किसी ने ठीक ही कहा है जो स्वयं बुद्धिहीन हो और मित्र का कहना भी न माने वह व्यक्ति मुसीबत में पड़ जाता है।”

(साभारः पंचतंत्र की कहानियां

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