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शुक्रवार, 26 जून 2009

शौर्य गाथा : लान्सनायक कर्मसिंह


बार बार शिकस्त
शिव कुमार गोयल

13 अक्टूबर, 1948 को पाकिस्तानी हमलावरों ने कबाइलियों के रूप में, कश्मीर के तिथवाल क्षेत्र पर अचानक भीषण हमला बोल दिया।

तिथवाल क्षेत्र की अंतिम चौकी पर सिख रेजिमेंट के लान्सनायक कर्मसिंह अपने बहादुर जवानों के साथ सजग प्रहरी के रूप में तैयार थे। भारतीय जवानों ने हमलावरों को फुर्ती के साथ ऐसी मार दी‍ कि वे सिर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए। सिख जवानों ने 'सत् श्री अकाल' के गगनभेदी उद्‍घोषों के साथ दुश्मन का काफी दूर तक पीछा करके उसे तिथवाल क्षेत्र से दूर धकेल दिया।

पाक हमलावरों ने एक के बाद एक अनेक हमले तिथवाल की अंतिम चौकी पर किए किंतु लान्सनायक कर्मसिंह उनके बहादुर सिख जवानों के शौर्य के सम्मुख पराजित हो गए तो उन्होंने भारतीय जवानों पर बमवर्षा भी की। किंतु भयंकर बम भी भारतीय रणबाँकुरों की अंतिम रक्षा-पंक्ति को हटा न सके। भारतीय जवान फौलाद की तरह चौकी के आगे डटे रहे।

दुश्मन ने चौथी बार तिथवाल पर हमला किया तो वीर लान्सनायक कर्मसिंह ने अपने बहादुर सिख जवानों को प्रोत्साहित करते हुए कहा - 'गुरु गोविंद सिंह के बहादुरों! आज दुश्मन ने क्रूर कबाइलियों से, महाराजा रणजीत सिंह के पवित्र कश्मीर पर हमला करवाकर हमारे स्वाभिमान को खुली चुनौती दी है। हमें पाकिस्तानी दरिंदों के हमले का वीरतापूर्वक जवाब देकर अपना पानी दिखाना है। दुश्मन इस बार बच न पाए। मोर्चे सँभालकर तैयार हो जाओ।'

सिख जवानों ने एक साथ 'सत् श्री अकाल' का गगनभेदी उद्‍घोष किया व दुश्मन पर गोलियाँ बरसाते हुए बिल्कुल निकट पहुँच गए। आमने सामने पहुँचने पर हथगोले का प्रयोग प्रारंभ हो गया। वीर लान्सनायक कर्मसिंह ने हथगोलों से अनेक पाक लुटेरों को धराशायी कर दिया। भारतीय रणबाँकुरों का शौर्य देखकर पाक लुटेरे इस बार भी पीछे हट गए, किंतु वीर कर्मसिंह दुश्मन के हथगोले से घायल हो गए।

पाक हमलावरों ने पीछे से और भी अधिक कुमुक इकट्‍ठी करके पाँचवी, छठी और सातवीं बार तिथवाल पर आक्रमण किया। घायल लान्सनायक वीर कर्मसिंह ने हर बार अपने मुट्‍ठी भर जवानों के साथ डटकर लोहा लिया।

लड़ाई का मैदान हर बार लुटेरों की लाशों से पट गया। 'सत् श्री अकाल' व 'भारत माता की जय' के उद्‍घोषों से आकाश गूँजता रहा। किंतु आठवीं बार दुश्मन ने और भी अधिक तेजी के साथ‍ तिथवाल पर हमला किया। वीर लान्सनायक कर्मसिंह घायल अवस्था में ही अपने मोर्चे पर डटे हुए दुश्मन पर गोलियाँ दागकर अपने बहादुर जवानों को प्रोत्साहन देते रहे। उन्होंने देखते ही देखते अनेक दुश्मनों को गोलियों से भून डाला।

साभार : देवपुत्र

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