गर्मी का मौसम, रात का समय, खुली छत पर मंद-मंद बहती ठंड मदमस्त हवा में जो आनंद और सुख मिलता है, ऐसा और कहाँ?
यह आनंद उस समय और भी बढ़ जाता है, जब अँधेरी रात के साफ आसमान में हजारों, लाखों, करोड़ों की संख्या में टिमटिमाते जगमगाते तारे एक ऐसी अद्भुत दुनिया का दृश्य प्रस्तुत करते हैं जिसके न आरंभ का पता चलता है और न अंत का।
सदियों से अनेक मनीषी, ऋषि और वैज्ञानिक इन्हें निहारते चले आ रहे हैं, परंतु रहस्य अभी तक बना हुआ है। तारों की इस अचरज भरी दुनिया को कोई अंतरिक्ष कोई ब्रह्माण्ड तो कोई तारा विश्व के नाम से संबोधित करता है।
बच्चो, रात को आकाश में जरा गौर से देखो, तुम्हें दो तरह के तारे दिखाई देंगे। इनमें से कुछ तारे अत्यंत चमकीले तो कुछ धुँधले दिखाई देते हैं, कुछ तारे स्थिर तो कुछ टिमटिमाते नजर आते हैं। जानते हो ऐसा क्यों है? आदि और अंत रहित इस खुले अंतरिक्ष में तारे, ग्रह, उपग्रह आदि अनेक आकार-प्रकार के आकाशीय पिंड हैं, जो दूर से तो लगभग एक से दिखाई देते हैं परंतु उनकी रचना और स्वभाव में अंतर मिलता है जो तारे टिमटिमाते रहते हैं वे हमारे सूर्य के समान विशाल तारे हैं। ऐसा तारों के केंद्र में नाभिकीय संलग्न अभिक्रिया करते हैं जिससे छोटे-छोटे नाभिक मिलकर एक बड़े नाभिक का निर्माण करते हैं जिससे अत्यधिक मात्रा में परमाणवीय ऊर्जा निकलती है।
यह ऊर्जा उष्मा रूप में बदलकर तरल अग्नि पुंज का विशाल आकार ले लेती है। उसी ऊर्जा से हमें प्रकाश और उष्मा मिलती है। हमारा सूर्य इसी प्रकार का एक तारा है। अंतरिक्ष में सूर्य जैसे असंख्य तारे हैं। अंतरिक्ष में इनसे छोटे आकाशीय पिंड ग्रह कहलाते हैं। आकार में छोटे होने के कारण इनमें दाब और ताप कम होते हैं। इनमें नाभिकीय अभिक्रिया नहीं होती क्योंकि दाब और ताप कम होने के कारण ये परमाणु एवं नाभिकों पर काबू नहीं पा सकते। इस कारण उनसे प्रकाश, उष्मा एवं ऊर्जा नहीं निकल पाती। ऐसे पिंड दूर से चमकते तो हैं परंतु उनमें दूसरों को प्रकाशित करने की क्षमता नहीं होती और वे दूसरों को न ही उष्मा दे पाते हैं। इन्हें ग्रह कहते हैं।
ग्रह और तारों में एक अंतर यह भी है कि तारे टिमटिमाते नजर आते हैं जबकि ग्रह ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि अग्निपुंज रूप में चमकने वाले तारों से जब प्रकाश किरणें हमारे वायुमंडल की विभिन्न प्रकार की सघन एवं विरल गैस परतों को पार करती हैं तब प्रत्येक माध्यम से दूसरे माध्यम में गुजरने के बाद इनका परावर्तन हो जाता है। मार्ग में इस बार-बार परिवर्तन के कारण ही हमें तारे टिमटिमाते नजर आते हैं। प्रत्येक तारा (सूर्य) आकाश गंगा में धुँधली सफेद सी पट्टी दिखाई देने वाली आकाश गंगा का सदस्य होता है। यह अपनी धुरी पर घूमता हुआ आकाश गंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है जबकि ग्रह किसी तारे सूर्य के परिवार का सदस्य होने के कारण अपनी कीली पर घूमता हुआ उसके चारों ओर परिक्रमा करता है। हमारी पृथ्वी, बुध, शुक्र आदि इसी प्रकार के ग्रह हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं।
आकार और प्रकार में ग्रह से छोटा आकाशीय पिंड उपग्रह है। इसमें न तो स्वयं में प्रकाश होता है और न दूसरों को प्रकाशित कर पाता है। जब इस पर किसी तारे का प्रकाश पड़ता है तब यह चमक उठता है जैसे हमारा चंद्रमा। यह सूर्य के प्रकाश से चमकता है और उसी के प्रकाश को चाँदनी रूप में पृथ्वी पर परिवर्तित कर देता है।
यह भी अपनी धुरी पर घूमता है और पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है। इसमें एक विशेष बात यह है अपनी धुरी पर जितने दिन में एक बार घूम लेता है पृथ्वी के चारों ओर की परिक्रमा में भी उतने ही दिन लगाता है। आकाश में चंद्रमा जैसे सैकड़ों उपग्रह हैं जो किसी न किसी ग्रह के चंद्रमा के रूप में परिक्रमा करते रहते हैं।
आप शायद नहीं जानते कि तारे प्राय: समूहों में पाए जाते हैं। अंतरिक्ष में 83 प्रतिशत तारे जोड़े के रूप में पाए जाते हैं। समूह रूप में भी इस प्रकार फैले हुए हैं कि यदि इन अलग-अलग समूह के तारों को रेखा द्वारा आपस में मिला दिया जाए तब आकाश में अलग-अलग प्रकार के प्रतीक बन जाते हैं। कुंभ, मकर, मेष, सिंह आदि ऐसे ही चिन्ह हैं। उन्हें तारामंडल अथवा राशि कहते हैं। हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर जिस मार्ग से परिक्रमा करती है। उसके ऊपर इस प्रकार फैले तारामंडल को 12 राशियों में नामांकित करके प्रत्येक माह के लिए एक राशि निर्धारित की गई है।
नवीन खोजों के आधार पर वर्तमान में 12 के स्थान पर 89 तारामंडल बताए जाते हैं। इनमें से 68 तारामंडल नग्न आँखों से देखे जा सकते। हाइड्र तारामंडल इनमें सबसे विशाल है। सेंटारस, जेमिनी, हरकुलिस, विग्रो आदि ऐसे अन्य तारामंडल भी हैं।
यह आनंद उस समय और भी बढ़ जाता है, जब अँधेरी रात के साफ आसमान में हजारों, लाखों, करोड़ों की संख्या में टिमटिमाते जगमगाते तारे एक ऐसी अद्भुत दुनिया का दृश्य प्रस्तुत करते हैं जिसके न आरंभ का पता चलता है और न अंत का।
सदियों से अनेक मनीषी, ऋषि और वैज्ञानिक इन्हें निहारते चले आ रहे हैं, परंतु रहस्य अभी तक बना हुआ है। तारों की इस अचरज भरी दुनिया को कोई अंतरिक्ष कोई ब्रह्माण्ड तो कोई तारा विश्व के नाम से संबोधित करता है।
बच्चो, रात को आकाश में जरा गौर से देखो, तुम्हें दो तरह के तारे दिखाई देंगे। इनमें से कुछ तारे अत्यंत चमकीले तो कुछ धुँधले दिखाई देते हैं, कुछ तारे स्थिर तो कुछ टिमटिमाते नजर आते हैं। जानते हो ऐसा क्यों है? आदि और अंत रहित इस खुले अंतरिक्ष में तारे, ग्रह, उपग्रह आदि अनेक आकार-प्रकार के आकाशीय पिंड हैं, जो दूर से तो लगभग एक से दिखाई देते हैं परंतु उनकी रचना और स्वभाव में अंतर मिलता है जो तारे टिमटिमाते रहते हैं वे हमारे सूर्य के समान विशाल तारे हैं। ऐसा तारों के केंद्र में नाभिकीय संलग्न अभिक्रिया करते हैं जिससे छोटे-छोटे नाभिक मिलकर एक बड़े नाभिक का निर्माण करते हैं जिससे अत्यधिक मात्रा में परमाणवीय ऊर्जा निकलती है।
यह ऊर्जा उष्मा रूप में बदलकर तरल अग्नि पुंज का विशाल आकार ले लेती है। उसी ऊर्जा से हमें प्रकाश और उष्मा मिलती है। हमारा सूर्य इसी प्रकार का एक तारा है। अंतरिक्ष में सूर्य जैसे असंख्य तारे हैं। अंतरिक्ष में इनसे छोटे आकाशीय पिंड ग्रह कहलाते हैं। आकार में छोटे होने के कारण इनमें दाब और ताप कम होते हैं। इनमें नाभिकीय अभिक्रिया नहीं होती क्योंकि दाब और ताप कम होने के कारण ये परमाणु एवं नाभिकों पर काबू नहीं पा सकते। इस कारण उनसे प्रकाश, उष्मा एवं ऊर्जा नहीं निकल पाती। ऐसे पिंड दूर से चमकते तो हैं परंतु उनमें दूसरों को प्रकाशित करने की क्षमता नहीं होती और वे दूसरों को न ही उष्मा दे पाते हैं। इन्हें ग्रह कहते हैं।
ग्रह और तारों में एक अंतर यह भी है कि तारे टिमटिमाते नजर आते हैं जबकि ग्रह ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि अग्निपुंज रूप में चमकने वाले तारों से जब प्रकाश किरणें हमारे वायुमंडल की विभिन्न प्रकार की सघन एवं विरल गैस परतों को पार करती हैं तब प्रत्येक माध्यम से दूसरे माध्यम में गुजरने के बाद इनका परावर्तन हो जाता है। मार्ग में इस बार-बार परिवर्तन के कारण ही हमें तारे टिमटिमाते नजर आते हैं। प्रत्येक तारा (सूर्य) आकाश गंगा में धुँधली सफेद सी पट्टी दिखाई देने वाली आकाश गंगा का सदस्य होता है। यह अपनी धुरी पर घूमता हुआ आकाश गंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है जबकि ग्रह किसी तारे सूर्य के परिवार का सदस्य होने के कारण अपनी कीली पर घूमता हुआ उसके चारों ओर परिक्रमा करता है। हमारी पृथ्वी, बुध, शुक्र आदि इसी प्रकार के ग्रह हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं।
आकार और प्रकार में ग्रह से छोटा आकाशीय पिंड उपग्रह है। इसमें न तो स्वयं में प्रकाश होता है और न दूसरों को प्रकाशित कर पाता है। जब इस पर किसी तारे का प्रकाश पड़ता है तब यह चमक उठता है जैसे हमारा चंद्रमा। यह सूर्य के प्रकाश से चमकता है और उसी के प्रकाश को चाँदनी रूप में पृथ्वी पर परिवर्तित कर देता है।
यह भी अपनी धुरी पर घूमता है और पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है। इसमें एक विशेष बात यह है अपनी धुरी पर जितने दिन में एक बार घूम लेता है पृथ्वी के चारों ओर की परिक्रमा में भी उतने ही दिन लगाता है। आकाश में चंद्रमा जैसे सैकड़ों उपग्रह हैं जो किसी न किसी ग्रह के चंद्रमा के रूप में परिक्रमा करते रहते हैं।
आप शायद नहीं जानते कि तारे प्राय: समूहों में पाए जाते हैं। अंतरिक्ष में 83 प्रतिशत तारे जोड़े के रूप में पाए जाते हैं। समूह रूप में भी इस प्रकार फैले हुए हैं कि यदि इन अलग-अलग समूह के तारों को रेखा द्वारा आपस में मिला दिया जाए तब आकाश में अलग-अलग प्रकार के प्रतीक बन जाते हैं। कुंभ, मकर, मेष, सिंह आदि ऐसे ही चिन्ह हैं। उन्हें तारामंडल अथवा राशि कहते हैं। हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर जिस मार्ग से परिक्रमा करती है। उसके ऊपर इस प्रकार फैले तारामंडल को 12 राशियों में नामांकित करके प्रत्येक माह के लिए एक राशि निर्धारित की गई है।
नवीन खोजों के आधार पर वर्तमान में 12 के स्थान पर 89 तारामंडल बताए जाते हैं। इनमें से 68 तारामंडल नग्न आँखों से देखे जा सकते। हाइड्र तारामंडल इनमें सबसे विशाल है। सेंटारस, जेमिनी, हरकुलिस, विग्रो आदि ऐसे अन्य तारामंडल भी हैं।